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महावीर प्रसाद द्विवेदी जीवनी जीवनी - Biography of Mahavir Prasad Dwivedi in Hindi Jivani

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जन्म : 15 May 1864 जिला रायबरेली के दौलतपुर नाम ग्राम में।

आधुनिक हिन्दी साहित्य को समृद्धशाली बनाने का श्रेय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (Mahavir Prasad Dwivedi) को जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। आर्थिक स्थिति प्रतिकूल होने के कारण घर पर ही संस्कृत, हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी और बंगला भाषा का गहन अध्ययन । शिक्षा के पश्चात् रेलवे की नौकरी छोडकर 'सरस्वती' के संपादन संभाल लिया।


महावीर प्रसाद द्विवेदी (Mahavir Prasad) जी का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में सं 1864 में हुआ था। इनके पिता का नाम पं॰ रामसहाय दुबे था। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। धनाभाव के कारण इनकी शिक्षा का क्रम अधिक समय तक न चल सका। इन्हें जी आई पी रेलवे में नौकरी मिल गई। 18 वर्ष की आयु में रेल विभाग अजमेर में 1 वर्ष का प्रवास। नौकरी छोड़कर मुंबई प्रस्थान एवं टेलीग्राफ का कम सीखकर इंडियन मिडलैंड रेलवे में तार बाबू के रूप में नियुक्ति। अपने उच्चाधिकारी से न पटने और स्वाभिमानी स्वभाव के कारण 1904 में झाँसी में रेल विभाग की 200 रुपये मासिक वेतन की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।


नौकरी के साथ-साथ द्विवेदी अध्ययन में भी जुटे रहे और हिंदी के अतिरिक्त मराठी, गुजराती, संस्कृत आदि का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। सन् 1903 में द्विवेदी जी ने सरस्वती मासिक पत्रिका के संपादन का कार्यभार सँभाला और उसे सत्रह वर्ष तक कुशलतापूर्वक निभाया। जैसे ही उन्हें 'सरस्वती' से आमन्त्रण प्राप्त हुआ, उन्होने रेलवे की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। 200 रूपये मासिक की नौकरी को त्यागकर मात्र 20 रूपये प्रतिमास पर सरस्वती के सम्पादक के रूप में कार्य करना उनके त्याग का परिचायक है। संपादन-कार्य से अवकाश प्राप्त कर द्विवेदी जी अपने गाँव चले आए और वहीं सं 1938 में इनका स्वर्गवास हो गया।


आलोचक :


आलोचक के रूप में 'रीति' के स्थान पर इन्होंने उपादेयता, लोक-हित, उद्देश्य की गम्भीरता, शैली की नवीनता और निर्दोषिता को काव्योत्कृष्टता की कसौटी के रूप में प्रतिष्ठित किया। इनकी आलोचनाओं से लोक-रुचि का परिष्कार हुआ। नूतन काव्य विवेक जागृत हुआ। सम्पादक के रूप में इन्होंने निरन्तर पाठकों का हित चिन्तन किया। इन्होंने नवीन लेखकों और कवियों को प्रोत्साहित किया। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त इन्हें अपना गुरु मानते हैं। गुप्तजी का कहना है कि “मेरी उल्टी-सीधी प्रारम्भिक रचनाओं का पूर्ण शोधन करके उन्हें 'सरस्वती' में प्रकाशित करना और पत्र द्वारा मेरे उत्साह को बढ़ाना द्विवेदी महाराज का ही काम था”। इन्होंने पत्रिका को निर्दोष, पूर्ण, सरस, उपयोगी और नियमित बनाया। अनुवादक के रूप में इन्होंने भाषा की प्रांजलता और मूल भाषा की रक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया।


मूल्यांकन :


हिन्दी साहित्य में महावीर प्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है। वह समय हिन्दी के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के अभावों की पूर्ति का था। इन्होंने ज्ञान के विविध क्षेत्रों- इतिहास, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पुरातत्त्व, चिकित्सा, राजनीति, जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिन्दी के अभावों की पूर्ति की। हिन्दी गद्य को माँजने-सँवारने और परिष्कृत करने में यह आजीवन संलग्न रहे। यहाँ तक की इन्होंने अपना भी परिष्कार किया। हिन्दी गद्य और पद्य की भाषा एक करने के लिए (खड़ीबोली के प्रचार-प्रसार के लिए) प्रबल आन्दोलन किया। हिन्दी गद्य की अनेक विधाओं को समुन्नत किया। इसके लिए इनको अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती और बंगला आदि भाषाओं में प्रकाशित श्रेष्ठ कृतियों का बराबर अनुशीलन करना पड़ता था। निबन्धकार, आलोचक, अनुवादक और सम्पादक के रूप में इन्होंने अपना पथ स्वयं प्रशस्त किया था।


महत्वपूर्ण कार्य :


        हिंदी साहित्य की सेवा करने वालों में द्विवेदी जी का विशेष स्थान है। द्विवेदी जी की अनुपम साहित्य-सेवाओं के कारण ही उनके समय को द्विवेदी युग के नाम से पुकारा जाता है। भारतेंदु युग में लेखकों की दृष्टि की शुद्धता की ओर नहीं रही। भाषा में व्याकरण के नियमों तथा विराम-चिह्नों आदि की कोई परवाह नहीं की जाती थी। भाषा में आशा किया, इच्छा किया जैसे प्रयोग दिखाई पड़ते थे। द्विवेदी जी ने भाषा के इस स्वरूप को देखा और शुध्द करने का संकल्प किया। उन्होंने इन अशुध्दियों की ओर आकर्षित किया और लेखकों को शुध्द तथा परिमार्जित भाषा लिखने की प्रेरणा दी।


        द्विवेदी जी ने खड़ी बोली को कविता के लिए विकास का कार्य किया। उन्होंने स्वयं भी खड़ी बोली में कविताएं लिखीं और अन्य कवियों को भी उत्साहित किया। श्री मैथिली शरण गुप्त, अयोध्या सिंह उपाध्याय जैसे खड़ी बोली के श्रेष्ठ कवि उन्हीं के प्रयत्नों के परिणाम हैं। द्विवेदी जी ने नये-नये विषयों से हिंदी साहित्य को संपन्न बनाया। उन्हीं के प्रयासों से हिंदी में अन्य भाषाओं के ग्रंथों के अनुवाद हुए तथा हिंदी-संस्कृत के कवियों पर आलोचनात्मक निबंध लिखे गए।


मुख्य कृतियाँ :


गद्य :


हिंदी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना, वैज्ञानिक कोश, नाट्यशास्त्र, विक्रमांकदेवचरितचर्चा, हिंदी भाषा की उत्पत्ति, संपत्तिशास्त्र, कौटिल्य कुठार, कालिदास की निरकुंशता, वनिता-विलाप, औद्योगिकी, रसज्ञ रंजन, कालिदास और उनकी कविता, सुकवि संकीर्तन, अतीत-स्मृति, साहित्य-संदर्भ, अदभुत आलाप, महिलामोद, आध्यात्मिकी, वैचित्र्य चित्रण, साहित्यालाप, विज्ञ विनोद, कोविद कीर्तन, विदेशी विद्वान, प्राचीन चिह्न, चरित चर्या, पुरावृत्त, दृश्य दर्शन, आलोचनांजलि, चरित्र चित्रण, पुरातत्त्व प्रसंग, साहित्य सीकर, ज्ञान वार्ता, वाग्विलास, संकलन, विचार-विमर्श, तरुणोपदेश


कविता :


 देवी स्तुति-शतक, कान्यकुब्जावलीव्रतम, समाचार पत्र संपादन स्तव, नागरी, कान्यकुब्ज-अबला-विलाप काव्य मंजूषा, सुमन, द्विवेदी काव्य-माला, कविता कलाप. अनुवाद : विनय विनोद (वैराग्य शतक - भतृहरि), विहार वाटिका (गीत गोविंद - जयदेव), स्नेह माला (शृंगार शतक - भतृहरि), श्री महिम्न स्तोत्र (महिम्न स्तोत्र), गंगा लहरी (गंगा लहरी - पंडितराज जगन्नाथ), ऋतुतरंगिणी (ऋतुसंहार - कालिदास), सोहागरात (ब्राइडल नाइट - बाइरन), कुमारसंभवसार (कुमारसंभवम - कालिदास), भामिनी-विलास (भामिनी विलास - पंडितराज जगन्नाथ), अमृत लहरी (यमुना स्तोत्र - पंडितराज जगन्नाथ), बेकन-विचार-रत्नावली (निबंध - बेकन), शिक्षा (एज्युकेशन - हर्बर्ट स्पेंसर), स्वाधीनता (ऑन लिबर्टी - जॉन स्टुअर्ट मिल), जल चिकित्सा (लुई कोने), हिंदी महाभारत (महाभारत), रघुवंश, वेणी-संहार (वेणीसंहार - भट्टनारायण), मेघदूत (कालिदास), किरातार्जुनीय (किरातार्जुनीयम् - भारवि), आख्यायिका सप्तक