Advertisement
उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका इस्मत चुग़ताई उम्दा कहानीकार रही हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के जरिये महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया। इस्मत चुग़ताई का जन्म: 15 अगस्त 1915, बदायूँ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था| उल्लेखनीय है कि उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़ें की दबी-कुचली सकुचाई और कुम्हलाई लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है। उनकी कहानी लिहाफ़ के लिए लाहौर हाईकोर्ट में उनपर मुक़दमा चला। जो बाद में ख़ारिज हो गया।
उन्होंने अनेक चलचित्रों की पटकथा लिखी और जुगनू में अभिनय भी किया। उनकी पहली फिल्म छेड़-छाड़ 1943 में आई थी। वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं। उनकी आख़िरी फ़िल्म गर्म हवा (1973) को कई पुरस्कार मिले। उर्दू साहित्य में सआदत हसन मंटो, इस्मत चुग़ताई, कृश्न चन्दर और राजेन्द्रसिंह बेदी को कहानी के चार स्तंभ माना जाता है। इनमें भी आलोचक मंटो और चुगताई को ऊंचे स्थानों पर रखते हैं क्योंकि इनकी लेखनी से निकलने वाली भाषा, पात्रों, मुद्दों और स्थितियों ने उर्दू साहित्य को नई पहचान और ताकत बक्शी। उर्दू साहित्य की दुनिया में ‘इस्मत आपा’ के नाम से विख्यात इस लेखिका का निधन 24 अक्टूबर, 1991 को हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार मुंबई के चन्दनबाड़ी में उन्हें अग्नि को समर्पित किया गया।
यह वक्तव्य है लेखिका इस्मत चुगताई उर्फ ‘उर्दू अफसाने की फर्स्ट लेडी’ का। जिन्होंने महिला सशक्तीकरण की सालों पहले एक ऐसी बड़ी लकीर खींच दी, जो आज भी अपनी जगह कायम है। उनकी रचनाओं में स्त्री मन की जटिल गुत्थियां सुलझती दिखाई देती हैं। महिलाओं की कोमल भावनाओं को जहां उन्होंने उकेरा, वहीं उनकी गोपनीय इच्छाओं की परतें भी खोलीं। इस्मत ने समाज को बताया कि महिलाएं सिर्फ हाड़-मांस का पुतला नहीं, उनकी भी औरों की तरह भावनाएं होती हैं। वे भी अपने सपने को साकार करना चाहती हैं।
पंद्रह अगस्त, 1915 में उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मीं इस्मत चुगताई को ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुसलिम तबके की दबी-कुचली सकुचाई और कुम्हलाई, पर जवान होतीं लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है।
इस्मत चुगताई ने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया, जिससे वे उर्दू साहित्य की सबसे विवादस्पद लेखिका बन गर्इं। उनके पहले औरतों के लिखे अफसानों की दुनिया सिमटी हुई थी। उस दौर में तथाकथित सभ्य समाज की दिखावटी-ऊपरी सतहों पर दिखते महिला-संबंधी मुद्दों पर लिखा जाता था, लेकिन इस्मत ने अपने लेखन से आंखों से ओझल होते महिलाओं के बड़े मुद्दों पर लिखना शुरू किया। उनकी शोहरत उनकी स्त्रीवादी विचारधारा के कारण है। साल 1942 में जब उनकी कहानी ‘लिहाफ’ प्रकाशित हुई तो साहित्य-जगत में बवाल मच गया। समलैंगिकता के कारण इस कहानी पर अश्लीलता का आरोप लगा और लाहौर कोर्ट में मुकदमा भी चला। उस दौर को इस्मत ने अपने लफ्जों में यों बयां किया-
प्रसिद्धि :
इस्मत चुग़ताई अपनी 'लिहाफ' कहानी के कारण ख़ासी मशहूर हुईं। 1941 में लिखी गई इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस दौर में किसी महिला के लिए यह कहानी लिखना एक दुस्साहस का काम था। इस्मत को इस दुस्साहस की कीमत चुकानी पड़ी, क्योंकि उन पर अश्लीलता का मामला चला, हालाँकि यह मामला बाद में वापस ले लिया गया। आलोचकों के अनुसार उनकी कहानियों में समाज के विभिन्न पात्रों का आईना दिखाया गया है।
इस्मत ने महिलाओं को असली जुबान के साथ अदब में पेश किया। उर्दू जगत् में इस्मत के बाद सिर्फ सआदत हसन मंटो ही ऐसे कहानीकार थे, जिन्होंने औरतों के मुद्दों पर बेबाकी से लिखा। इस्मत का कैनवास काफ़ी व्यापक था, जिसमें अनुभव के रंग उकेरे गए थे। ऐसा माना जाता है कि 'टेढ़ी लकीर' उपन्यास में इस्मत ने अपने जीवन को ही मुख्य प्लाट बनाकर एक महिला के जीवन में आने वाली समस्याओं को पेश किया।
लेखन कार्य :
अपनी शिक्षा पूर्ण करने के साथ ही इस्मत चुग़ताई लेखन क्षेत्र में आ गई थीं। उन्होंने अपनी कहानियों में स्त्री चरित्रों को बेहद संजीदगी से उभारा और इसी कारण उनके पात्र ज़िंदगी के बेहद क़रीब नजर आते हैं। इस्मत चुग़ताई ने ठेठ मुहावरेदार गंगा-जमुनी भाषा का इस्तेमाल किया, जिसे हिन्दी-उर्दू की सीमाओं में क़ैद नहीं किया जा सकता। उनका भाषा प्रवाह अद्भुत था। इसने उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रचनात्मक वैशिष्ट्य :
इस्मत का कैनवास काफी व्यापक था जिसमें अनुभव के विविध रंग उकेरे गए हैं। ऐसा माना जाता है कि "टेढी लकीरे" उपन्यास में उन्होंने अपने ही जीवन को मुख्य प्लाट बनाकर एक स्त्री के जीवन में आने वाली समस्याओं और स्त्री के नजरिए से समाज को पेश किया है। वे अपनी 'लिहाफ' कहानी के कारण खासी मशहूर हुइ'। 1941 में लिखी गई इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस दौर में किसी महिला के लिए यह कहानी लिखना एक दुस्साहस का काम था। इस्मत को इस दुस्साहस की कीमत अश्लीलता को लेकर लगाए गए इलजाम और मुक़दमे के रूप में चुकानी पड़ी।
उन्होंने आज से करीब 70 साल पहले पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों के मुद्दों को स्त्रियों के नजरिए से कहीं चुटीले और कहीं संजीदा ढंग से पेश करने का जोखिम उठाया। उनके अफसानों में औरत अपने अस्तित्व की लड़ाई से जुड़े मुद्दे उठाती है। साहित्य तथा समाज में चल रहे स्त्री विमर्श को उन्होंने आज से 70 साल पहले ही प्रमुखता दी थी। इससे पता चलता है कि उनकी सोच अपने समय से कितनी आगे थी। उन्होंने अपनी कहानियों में स्त्री चरित्रों को बेहद संजीदगी से उभारा और इसी कारण उनके पात्र जिंदगी के बेहद करीब नजर आते हैं। स्त्रीयों के सवालों के साथ ही उन्होंने समाज की कुरीतियों, व्यवस्थाओं और अन्य पात्रों को भी बखूबी पेश किया। उनके अपसानों में करारा व्यंग्य मौजूद है।
मुख्य कृतियाँ :
कहानी संग्रह :
1. चोटें, छुई-मुई, एक बात, कलियाँ, एक रात, दो हाथ दोज़खी, शैतान
उपन्यास :
1. टेढ़ी लकीर, जिद्दी, एक कतरा-ए-खून, दिल की दुनिया, मासूमा, बहरूप नगर, सौदाई, जंगली कबूतर, अजीब आदमी, बाँदी
आत्मकथा :
1. कागजी है पैरहन
2. पुरस्कार/सम्मान
3. 1974- गालिब अवार्ड, टेढ़ी लकीर पर
साहित्य अकादमी पुरस्कार :
1. इक़बाल सम्मान’
2. मखदूम अवार्ड
3. नेहरू अवार्ड
निधन :
1. 24 अक्टूबर, 1991