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धीरजलाल हीरालाल अंबानी (२८ दिसम्बर, १९३३, - ६ जुलाई, २००२) जिन्हें धीरुभाई भी कहा जाता है) भारत के एक चिथड़े से धनी व्यावसायिक टाइकून बनने की कहानी है जिन्होनें रिलायंस उद्योग की स्थापना मुम्बई में अपने चचेरे भाई के साथ की। कई लोग अंबानी के अभूतपूर्व/उल्लेखनीय विकास के लिए अन्तरंग पूंजीवाद और सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों तक उनकी पहुँच को मानते हैं क्योंकि ये उपलब्धि अति दमनकारी व्यावसायिक वातावरण में पसंदीदा वर्ताव द्वारा प्राप्त की गई थी। (लाइसेंस राज ने भारतीयों को दबाया।
१९९० तक भारतीय व्यवसाय का गला घोंट दिया और उन्हीं को राजनीतिज्ञों ने लाइसेंस प्रदत्त किया जो की उनके इष्ट थे, जिसने प्रतियोगिता के कोई आसार नही छोड़े)। अंबानी ने अपनी कंपनी रिलायंस को १९७७ में सार्वजानिक क्षेत्र में सम्मिलित किया और २००७ तक परिवार (बेटे अनिल और मुकेश) की सयुंक्त धनराशी १०० अरब डॉलर थी, जिसने अम्बानियों को विश्व के धनी परिवारों में से एक बना दिया।
धीरजलाल हीरालाल अंबानी जो ज्यादातर धीरुभाई अंबानी के नाम से जाने जाते है, एक सफल भारतीय व्यवसाय के शक्तिशाली कारोबारी थे. जिन्होंने 1966 में रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना की, उन्होंने जिस मेहनत और लगन से तरक्की की है उसी वजह से भारत का हर युवा उनसें प्रेरणा लेता है, धीरुभाई अंबानी ने हमें ये सोचने के लिये प्रेरित किया की जिसमें काबिलियत होती है, फिर चाहे वो किसी भी परिस्तिथि में क्यों ना हो सफलता पा सकता है.
आरम्भिक जीवन :
धीरजलाल हीरालाल अंबानी अथवा धीरुभाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर, 1932, को गुजरात के जूनागढ़ जिले के चोरवाड़ गाँव में एक सामान्य मोध बनिया परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम हिराचंद गोर्धनभाई अंबानी और माता का नाम जमनाबेन था। उनके पिता अध्यापक थे। अपने माँ-बाप के पाच संतानों में धीरूभाई तीसरे नंबर के थे। उनके दूसरे भाई-बहन थे रमणिकलाल, नटवर लाल, त्रिलोचना और जसुमती। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें हाईस्कूल में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ गई। ऐसा कहा जाता है की परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए उन्होंने गिरनार के पास भजिए की एक दुकान लगाई, जो मुख्यतः यहां आने वाले पर्यटकों पर आश्रित थी।
हालाँकि कारोबार की सफलता में धीरुभाई अम्बानी ने आसमान की बुलंदियों को छू लिया था पर उनपर लचीले मूल्यों और अनैतिक प्रवृति अपनाने के आरोप भी लगे। उनपर यह आरोप लगा कि उन्होंने सरकारी नीतियों को अपनी आवश्यकताओं के अनुकूल चालाकी से बदलवाया और अपने प्रतिद्वंदियों को भी सरकारी नीतियों के सहारे पठखनी दी।
धीरुभाई अम्बानी ने अपनी पहली नौकरी यमन के शहर अदन में की| वे वहा की कंपनी अ. बेससे में 300 रूपये के वेतन पर एक छोटी सी नौकरी करते थे| वहीँ से धीरुभाई के मन में व्यवसाय की बारीकियां जानने को लेकर उत्सुकता पैदा हुई| यहीं से वे अ. बेससे में नौकरी करते हुए एक गुजराती व्यावसायिक कंपनी में काम करने लगे और वहां से उन्होंने लेखा जोखा, वित्तीय विभाग का काम और शिपिंग पेपर्स तैयार करना सीखा|
धीरुभाई के मैट्रिक परीक्षा के परिणाम आने से पहले ही उनके पिता ने नौकरी के लिए उनके बड़े भाई रमणीक भाई के यहाँ अदन जाने को कहा | धीरुभाई आगे पढना चाहते थे लेकिन पिता की आर्थिक तंगी के आगे उनको पढाई छोडनी पड़ी थी | अब वो पासपोर्ट बनवाने राजकोट गये और उसके बाद वीजा भी बनवाया | अब सारी तैयारी के बाद वो मुम्बई पहुचे जहा से अदन के लिए जहाज जाता था | जब वो जहाज पर अदन जा रहे थे तब एक गुजराती समाचार पत्र में उनके मैट्रिक परीक्षा का नतीजा आया था जिसमे वो द्वितीय श्रेणी से उतीर्ण हुए थे |
25 वर्षीय Dhirubhai Ambani धीरूभाई अम्बानी ने भारत लौटने पर 50000 रूपये की पूंजी से Reliance Commercial Corporation की स्थापना की और इसके लिए उन्होंने ICICI से पहला ऋण लिया था | इस कम्पनी का मुख्य उद्देश्य यार्न को आयात करना और मसालों को निर्यात करना था | धीरुभाई ने किराए के मकान से व्यापार शुरू किया था जिसमे एक टेलीफोन ,एक मेज और तीन कुर्सिय थी | शुरुवात में उन्होंने व्यापार सँभालने के लिए दो सहायक भर्ती किये थे | 1965 में उनके व्यापार के सांझेदार चंपकलाल दमानी ने उनके साथ सांझेदारी खत्म कर दी जिससे सारा व्यापार अब वो अकेले सँभालने लग गये |
उसी दौरान आज़ादी के लिए हुए यमनी आन्दोलन ने aden में रह रहे भारतियों के लिए व्यवसाय के सारे दरवाज़े बंद कर दिए| तब 1958 में धीरुभाई भारत वापस आ गए और मुंबई में व्यवसाय शुरू करने के लिए अवसर तलाशने लगे| चूँकि धीरुभाई व्यापार में एक बड़ा निवेश करने में असक्षम थे तो मसालो और शक्कर का व्यापार रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन के नाम से शुरू किया| इस व्यापार के पीछे धीरुभाई का लक्ष्य मुनाफे पर ज्यादा ध्यान न देते हुए ज्यादा से ज्यादा उत्पादों का निर्माण और उनकी गुणवत्ता पर था|
1962 में Dhirubhai वापस भारत लौट आये और 15,000 रूपये की राशी के साथ Reliance Commercial Corporation की शुरुआत की. शुरुआत में Reliance Corporation का business पॉलिएस्टर यार्न import करने और मसाले export करने का था. Reliance Corporation का पहला office नर्सिनाथान स्ट्रीट में बना. वह एक 350 square feet का एक कमरा था जिसमें केवल एक टेलीफोन, एक टेबल और 3 कुर्सियां थी. शुरू में उनके पास उनके काम में उनके 2 सहायक थे.
1965 में चम्पकलाल दमानी और धीरुभाई अम्बानी ने business में अपनी साझेदारी ख़तम कर दी और धीरुभाई ने अकेले अपने दम पर शुरुआत की. माना जा रहा था कि business में partnership ख़तम करने का कारण दोनों का बिलकुल अलग सवभाव था. उन दोनों का बिसनेस चलाने का तरीका काफी अलग था. चम्पकलाल दमानी एक सतर्क व्यापारी थे और उनकी सूत बनाने की inventories लगाने में कोई रूचि नहीं थी जबकि धीरुभाई risk उठाने वाले के रूप में जाने जाते थे, और उन्होंने वे inventories बनाने का फैसला किया. उन्हें अपने माल की कीमत बढ़ने की उम्मीद पहले से ही थी और उससे उन्हें जो profit हुआ वो उनके business की growth के लिए काफी था.
इस समय अंतराल के दौरान धीरुभाई और उनके परिवार को मुंबई के jaihind estate में एक रूम में रहना पड़ा था. 1968 में उन्होंने South Mumbai में एक महंगा फ्लैट खरीद लिया. 1960 के दशक के अंत तक धीरुभाई की संपत्ति 10 लाख रूपये के करीब थी।
अब तक धीरुभाई को वस्त्र व्यवसाय की अच्छी समझ हो गयी थी। इस व्यवसाय में अच्छे अवसर की समझ होने के कारण उन्होंने वर्ष 1966 में अहमदाबाद के नैरोड़ा में एक कपड़ा मिल स्थापित किया। यहाँ वस्त्र निर्माण में पोलियस्टर के धागों का इस्तेमाल हुआ और धीरुभाई ने ‘विमल’ ब्रांड की शुरुआत की जो की उनके बड़े भाई रमणिकलाल अंबानी के बेटे, विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था। उन्होंने “विमल” ब्रांड का प्रचार-प्रसार इतने बड़े पैमाने पर किया कि यह ब्रांड भारत के अंदरूनी इलाकों में भी एक घरेलु नाम बन गया। वर्ष 1975 में विश्व बैंक के एक तकनिकी दल ने ‘रिलायंस टेक्सटाइल्स’ के निर्माण इकाई का दौरा किया और उसे “विकसित देशों के मानकों से भी उत्कृष्ट” पाया।
विचार :
1. जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं , वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं |
2. ना शब्द मुझे सुनाई नहीं देता |
3. कठिनाइयों में भी अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश करें | कठिनाइयों को अवसरों में तब्दील करें. असफलताओं के बावजूद, अपना मनोबल ऊँचा रखें. अंत में सफलता आपको अवश्य मिलेगी |
4. बड़ा सोचो, जल्दी सोअचो, आगे सोचो. विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है.
5. फायदा कमाने के लिए न्योते की ज़रुरत नहीं होती
6. रिलायंस में विकास की कोई सीमा नहीं है. मैं हमेशा अपना वीज़न दोहराता रहता हूँ. सपने देखकर ही आप उन्हें पूरा कर सकते हैं |
7. सही उद्यमशीलता जोखिम लेने से ही आता है |
8. यदि आप दृढ संकल्प और पूर्णता के साथ काम करेंगे तो सफलता ज़रूर मिलेगी |
9. हमारे स्वप्न विशाल होने चाहिए. हमारी महत्त्वाकांक्षा ऊँची होनी चाहिए. हमारी प्रतिबद्धता गहरी होनी चाहिए और हमारे प्रयत्न बड़े होने चाहिए. रिलायंस और भारत के लिए यही मेरा सपना है |
10. मैं भारत को एक महान आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देखता हूँ |
सम्मान :
• एशियन बिज़नस लीडरशिप फोरम अवार्ड्स 2011 में मरणोपरांत ‘एबीएलएफ ग्लोबल एशियन अवार्ड’ से सम्मानित।
• भारत में केमिकल उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए ‘केमटेक फाउंडेशन एंड कैमिकल इंजीनियरिंग वर्ल्ड’ द्वारा ‘मैन ऑफ़ द सेंचुरी’ सम्मान, 2000।
• एशियावीक पत्रिका द्वारा वर्ष 1996, 1998 और 2000 में ‘पॉवर 50 – मोस्ट पावरफुल पीपल इन एशिया’ की सूची में शामिल।
• वर्ष 1998 में पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय द्वारा अप्रतीम तेत्रित्व के लिए ‘डीन मैडल’ प्रदान किया गया।
• वर्ष 2001 में ‘इकनोमिक टाइम्स अवार्ड्स फॉर कॉर्पोरेट एक्सीलेंस’ के अंतर्गत ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड।
• फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) द्वारा ‘मैन ऑफ 20th सेंचुरी’ घोषित किया गया
मृत्यु :
सन् 1955 में जेब में 500 रुपए रखकर किस्मत आजमाने मुंबई पहुंच गए। और यहीं से शुरू हुई उनकी व्यावसायिक यात्रा। यहां से धीरूभाई अंबानी ने ऐसे कदम बढ़ाए कि फिर कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। उनका नाम देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हुआ। 6 जुलाई 2002 को धीरूभाई अंबानी ने दुनिया से विदा ली। इस समय वे 62000 करोड़ रुपए के मालिक थे। वर्तमान में उनके बेटे मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी उनकी सल्तनत को संभाले हुए हैं। पिता की तरह आज इन दोनों भाईयों का नाम भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के व्यवसायियों में शुमार है।