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राजनेता

चंद्र शेखर सिंह जीवनी - Biography of Chandra Shekhar Singh in Hindi Jivani

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        चन्द्र शेखर सिंह भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे। इन्हें युवा तुर्क का सम्बोधन इनकी निष्पक्षता के कारण प्राप्त हुआ था। वह मेधा प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं जिन्हें विधाता कई योग्यता देकर पृथ्वी पर भेजता है और चंद्रशेखर का शुमार उन्हीं व्यक्तियों में करना चाहिए। विश्वनाथ प्रताप सिंह के बाद चंद्रशेखर ने ही प्रधानमंत्री का पदभार सम्भाला था। वह आचार्य नरेंद्र देव के काफ़ी समीप माने जाते थे। उनके व्यक्तित्व एवं चरित्र से इन्होंने बहुत कुछ आत्मसात किया था।


        एक सांसद के रूप में चंद्रशेखर का वक्तव्य पक्ष और विपक्ष दोनों बेहद ध्यान से सुनते थे। इनके लिए प्रचलित था कि यह राजनीति के लिए नहीं बल्कि देश की उन्नति की राजनीति हेतु कार्य करने में विश्वास रखते हैं। चंद्रशेखर आत्मा की आवाज़ पर प्रशंसा और आलोचना करते थे। तब यह नहीं देखते थे कि वह ऐसा पक्ष के प्रति कर रहे हैं अथवा विपक्ष के प्रति। लेकिन देश को इस सुयोग्य व्यक्ति से अधिकाधिक उम्मीदें थीं जो निश्चय ही राजनीतिक व्यवस्था के कारण प्राप्त नहीं की जा सकीं।


प्रारंभिक जीवन :


        चंद्रशेखर का जन्म 1 जुलाई, 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के ग्राम इब्राहीमपुर में हुआ था। इनका कृषक परिवार था। चंद्रशेखर का राजनीति के प्रति रुझान विद्यार्थी जीवन में ही हो गया था। इन्हें आग उग़लते क्रान्तिकारी विचारों के कारण जाना जाता था। चंद्रशेखर ने 1950-1951 में राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की।


        इनका विवाह दूजा देवी के साथ सम्पन्न हुआ था। इनके दो पुत्र पंकज और नीरज हैं। वे अपने देश से निःस्वार्थ भावना से जुड़े हुए थे. इनको अध्ययन में विशेष रूचि थी, स्वूल में वे एक मेधावी छात्र रहे. इलाहबाद यूनिवर्सिटी से अपना अध्ययन पूरा करने के बाद इन्होने राजनीति में प्रवेश किया.


        श्री चन्द्र शेखर अपने छात्र जीवन से ही राजनीति की ओर आकर्षित थे और क्रांतिकारी जोश एवं गर्म स्वभाव वाले वाले आदर्शवादी के रूप में जाने जाते थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1950-51) से राजनीति विज्ञान में अपनी मास्टर डिग्री करने के बाद वे समाजवादी आंदोलन में शामिल हो गए। उन्हें आचार्य नरेंद्र देव के साथ बहुत निकट से जुड़े होने का सौभाग्य प्राप्त था। वे बलिया में जिला प्रजा समाजवादी पार्टी के सचिव चुने गए एक साल के भीतर वे उत्तर प्रदेश में राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के संयुक्त सचिव बने। 1955-56 में वे उत्तर प्रदेश में राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के महासचिव बने।


        राजनीति में इन्हें छात्र जीवन से ही दिलचस्पी थी. उस वक्त देश प्रेम ही जीवन था, हर व्यक्ति बसंती चोला पहने अपने देश प्रेम में लिप्त होता था. चंद्रशेखर की भाषाशैली अनुपम एवम तीव्र थी, उसमे इतनी सच्चाई और दृढता थी कि कोई उनकी बात काट नहीं सकता था. पक्ष हो या विपक्ष वो सभी के लिए सम्मानीय एवम सभी को मार्गदर्शन देते थे क्यूंकि इनमें निजी स्वार्थ का भाव था ही नहीं. चंद्रशेखर जी युवाओं के लिए प्रेरणा के प्रतिबिम्ब रहे, इन्होने युवाओं को जगाने का भरपूर प्रयास किया.


        उनका मानना था, “युवा को शक्ति मानने वाला ही, देश को एक स्वस्थ्य प्रगति की तरफ बढ़ाता है, क्यूंकि उसमें स्वहित के बजाय राष्ट्र के कल्याण का भाव होता है.” चंद्रशेखर सिंह का राजनैतिक जीवन एक स्वच्छ दर्पण की तरह है. सर्वप्रथम वे समाजवादी आंदोलनों से जुड़े, इन्होने पिछड़े वर्गों के लोगो के लिए बहुत कार्य किये. उस वक्त यह एक अहम् मुद्दा हुआ करता था. दलितों को सामान्य जीवन दिलाने की लड़ाई में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पर चंद्रशेखर जी ने अन्य सामाजिक धर्मों की भावनाओं का भी ध्यान रखना भी अहम् समझा, ताकि किसी तरह की हिंसा का मुख न देखना पड़े.


        1962 में वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए। वे जनवरी 1965 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1967 में उन्हें कांग्रेस संसदीय दल का महासचिव चुना गया। संसद के सदस्य के रूप में उन्होंने दलितों के हित के लिए कार्य करना शुरू किया एवं समाज में तेजी से बदलाव लाने के लिए नीतियाँ निर्धारित करने पर जोर दिया। इस संदर्भ में जब उन्होंने समाज में उच्च वर्गों के गलत तरीके से बढ़ रहे एकाधिकार के खिलाफ अपनी आवाज उठाई तो सत्ता पर आसीन लोगों के साथ उनके मतभेद हुए।


        वे एक ऐसे ‘युवा तुर्क’ नेता के रूप में सामने आए जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थ के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वे 1969 में दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘यंग इंडियन’ के संस्थापक एवं संपादक थे। इसका सम्पादकीय अपने समय के विशिष्ट एवं बेहतरीन संपादनों में से एक हुआ करता था। आपातकाल (मार्च 1977 से जून 1975) के दौरान ‘यंग इंडियन’ को बंद कर दिया गया था। फरवरी 1989 से इसका पुनः नियमित रूप से प्रकाशन शुरू हुआ। वे इसके संपादकीय सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष थे।


        आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने बहुत लोगों को खरीदने, लालच देने की कोशिश की- लेकिन इंदिरा गांधी की तरफ से चंद्रशेखर को किसी भी तरह के लालच या प्रलोभन देने की कोई कोशिश नहीं हुई. आपातकाल के दौरान चुनाव की घोषणा हुई. चंद्रशेखर जनता पार्टी के बड़े नेताओं में से एक थे. दिल्ली के प्रगति मैदान में 1 मई, 1977 को जनता पार्टी का विधिवत गठन हुआ. इसकी अध्यक्षता मोरारजी देसाई ने की थी. इस सम्मेलन के बाद रामलीला मैदान में एक सभा हुई. इस सभा में एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को मानते हुए मोरारजी देसाई ने घोषणा किया कि चंद्रशेखर जनता पार्टी के अध्यक्ष होंगे.


        इस तरह चंद्रशेखर जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष बने. 23 मार्च, 1977 को आपातकाल हटा. इसके कई कारण थे. इस दौरान जितने भी बड़े नेता थे वे मोरारजी देसाई की सरकार में मंत्री बनना चाहते थे. वे सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, बल्लिया से वे सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त हुए। एक साल के भीतर ही, उनकी नियुक्ती उत्तर प्रदेश राज्य में PSP के जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर की गयी। 1955-56 में वे राज्य में पार्टी के जनरल सेक्रेटरी बने।


        1962 में उत्तर प्रदेश के राज्य सभा चुनाव से उनका संसदीय करियर शुरू हुआ। अपने राजनीतिक करियर के शुरुवाती दिनों में वे आचार्य नरेंद्र देव के साथ रहने लगे थे। 1962 से 1967 तक शेखर का संबंध राज्य सभा से था। लेकिन जब उस समय आनी-बानी की घोषणा की गयी थी, तब उन्हें कांग्रेस पार्टी का राजनेता माना गया था और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर पटियाला जेल भी भेजा था। 1983 में उन्होंने देश की भलाई के लिए राष्ट्रिय स्तर पर पदयात्रा का भी आयोजन किया था, उन्हें “युवा तुर्क” की पदवी भी दी गयी थी।


        चंद्र शेखर सोशलिस्ट पार्टी के मुख्य राजनेता थे। उन्होंने बैंको के राष्ट्रीयकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बाद में 1964 में वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1962 से 1967 तक वे राज्य सभा के सदस्य बने हुए थे। सबसे पहले 1967 में वे लोक सभा में दाखिल हुए थे। कांग्रेस पार्टी के सदस्य रहते हुए, उन्होंने कई बार इंदिरा गाँधी और उनके कार्यो की आलोचना की थी। इस वजह से 1975 में उन्हें कांग्रेस पार्टी से अलग होना पड़ा था। इसी कारणवश आनी-बानी की परिस्थिति में उन्हें गिरफ्तार किया गया था।


        आनी-बानी के समय में उनके साथ-साथ मोहन धारिया और राम धन जैसे नेताओ को भी गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने कांग्रेस पार्टी में “जिंजर ग्रुप” की शुरुवात भी की थी, जिसके सदस्य अविभाजित कांग्रेस पार्टी के समय में खुद फिरोज गाँधी और सत्येन्द्र नारायण भी थे। 15 जून 1975 को आपातकाल लागू होने के बाद चन्द्रशेखर को मीसा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि वह कांग्रेस की शीर्ष संख्या केंद्रीय निर्वाचन और कार्यकारी समिति के सदस्य थे। वह सत्तारूढ़ दल के गिरफ्तार होने वाले चंद नेताओं में से एक थे।


        चंद्रशेखर ने हमेशा शक्त‍ि और पैसे की राजनीति को दरकिनार करके सामाजिक बदलाव और लोकतांत्रिक मूल्यों की राजनीति पर जोर दिया। आपातकाल के दौरान जेल में बिताए दिनों पर प्रकाशित उनकी पुस्तक 'मेरी जेल डायरी' सामाजिक बदलाव का जीवंत दस्तावेज है। चंद्रशेखर ने सुदूर दक्षिण स्थित कन्याकुमारी से दिल्ली स्थित राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधि राजघाट तक पदयात्रा की। इस दौरान उन्होंने 06 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 के बीच 4260 किमी की पैदल यात्रा की। यात्रा का उद्देश्य आम लोगों की समस्याओं को करीब से जानना और उन्हें सामने लाना था।


        धीरे-धीरे उनकी राजनीतिक में गहरी पैठ बनती चली गई। वास्तव में श्री चंद्रशेखर राजनीतिक में अपना भविष्य बनाने नहीं बल्कि देश और समाज का भविष्य बनाने के लिए आए थे। यही उनका सपना था और यही उनके विचार थे। उनका विचार था कि भारत की 70% जनता गांव में निवास करती है। यदि गांवों का विकास हो जाए तो भारत का अपने आप ही विकास हो जाएगा। विकास क्रम में सबसे पहले वे बाल शिक्षा पर विशेष जोर देते थे।


        उनका मानना था कि आज का बालक कल का नेता और देश का भविष्य है। अतः बच्चों के साथ मानवीयता का, सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए, निर्दयता का नहीं। श्री वि.पि सिंह की सरकार गिर जाने के बाद श्री चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से केंद्र में अपनी सरकार बनाई। 10 नवंबर, 1990 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।


मृत्यू :


        भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. उन्होंने रविवार की सुबह पौने नौ बजे दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में अंतिम साँस ली. कैंसर की बीमारी से जूझ रहे चंद्रशेखर को पिछले एक सप्ताह से अस्पताल के सघन चिकित्सा में रखा गया था. समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर का इलाज पिछले तीन महीने से अपोलो अस्पताल में चल रहा था. उनकी गंभीर हालत को देखते हुए शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए अपोलो अस्पताल गए थे.