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कलाकार

विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जीवनी - Biography of Vishnu Digambar Paluskar in Hindi Jivani

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विष्णु दिगम्बर पलुस्कर (१८ अगस्त १८७२ - २१ अगस्त १९३१) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रतिभा थे, जिन्होंने भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे भारतीय समाज में संगीत और संगीतकार की उच्च प्रतिष्ठा के पुनरुद्धारक, समर्थ संगीतगुरु, अप्रतिम कंठस्वर एवं गायनकौशल के घनी भक्तहृदय गायक। पलुस्कर ने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में महात्मा गांधी की सभाओं सहित विभिन्न मंचों पर रामधुन गाकर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाया। पलुस्कर ने लाहौर में गान्धर्व विद्यालय की स्थापना कर भारतीय संगीत को एक विशिष्ट स्थान दिया। इसके अलावा उन्होंने अपने समय की तमाम धुनों की स्वरलिपियों को संग्रहित कर आधुनिक पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।


विष्णु दिगम्बर पलुस्कर का जन्म 18 अगस्त, 1872 को अंग्रेज़ी शासन वाले बंबई प्रेसीडेंसी के कुरूंदवाड़ (बेलगाँव) में हुआ था। पलुस्कर को घर में संगीत का माहौल मिला था। क्योंकि उनके पिता दिगम्बर गोपाल पलुस्कर धार्मिक भजन और कीर्तन गाते थे। विष्णु दिगम्बर पलुस्कर को बचपन में एक भीषण त्रासदी से गुजरना पड़ा। समीपवर्ती एक कस्बे में दत्तात्रेय जयंती के दौरान उनकी आंख के समीप पटाखा फटने के कारण उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। आंखों की रोशनी जाने के बाद उपचार के लिए वह समीप के मिरज राज्य चले गए।


धनार्जन के लिए उन्होंने संगीत के सार्वजनिक कार्यक्रम भी किए। पलुस्कर संभवत: पहले ऐसे शास्त्रीय गायक हैं, जिन्होंने संगीत के सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए। बाद में पलुस्कर मथुरा आए और उन्होंने शास्त्रीय संगीत की बंदिशें समझने के लिए ब्रज भाषा सीखी। बंदिशें अधिकतर ब्रजभाषा में ही लिखी गई हैं। इसके अलावा उन्होंने मथुरा में ध्रुपद शैली का गायन भी सीखा।


पलुस्कर मथुरा के बाद पंजाब घूमते हुए लाहौर पहुंचे और 1901 में उन्होंने गंधर्व विद्यालय की स्थापना की। इस स्कूल के जरिए उन्होंने कई संगीत विभूतियों को तैयार किया। हालांकि स्कूल चलाने के लिए उन्हें बाजार से कर्ज लेना पड़ा। बाद में उन्होंने मुंबई में अपना स्कूल स्थापित किया। कुछ वर्ष बाद आर्थिक कारणों से यह स्कूल नहीं चल पाया और इसके कारण पलुस्कर की संपत्ति भी जब्त हो गई। पलुस्कर के शिष्यों में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, पंडित विनायक राव पटवर्धन, पंडित नारायण राव और उनके पुत्र डी वी पलुस्कर जैसे दिग्गज गायक शामिल थे।


उन्होंने तीन खंडों में संगीत बाल प्रकाश नामक पुस्तक लिखी और 18 खंडों में रागों की स्वरलिपियों को संग्रहित किया। संगीत के इस महान साधक का निधन 21 अगस्त 1931 को हुआ।


संगीत की शिक्षा


ग्वालियर घराने में शिक्षित पं. बालकृष्ण बुवा इचलकरंजीकर से मिरज में संगीत की शिक्षा आरंभ की। बारह वर्ष तक संगीत की विधिवत तालीम हासिल करने के बाद पलुस्कर के अपने गुरु से संबंध खराब हो गए। बारह वर्ष कठोर तप:साधना से संगीत शिक्षाक्रम पूर्ण करके सन्‌ 1896 में समाज की कुत्या और अवहेलना एवं संगीत गुरुओं की संकीर्णता से भारतीय संगीत के उद्धार के लिए दृढ़ संकल्प सहित यात्रा आरंभ की। इस दौरान उन्होंने बड़ौदा और ग्वालियर की यात्रा की। गिरनार में दत्तशिखर पर एक अलौकिक पुरुष के संकेतानुसार लाहौर को सर्वप्रथम कार्यक्षेत्र चुना।


कैरियर


विष्णु दिगंबर पलुस्कर को उनकी पढ़ाई बंद करनी पड़ी क्योंकि दुर्घटना की वजह से उनकी दृष्टि बहुत बड़ी थी और इसलिए उन्होंने संगीत के अध्ययन में खुद को पंजीकृत किया। मिराज के चीफ के समर्थन के तहत, उन्होंने पंडित बालकृष्णबुवा इचलकरंजीकर के अंत में कला का अध्ययन किया। मिराज, विष्णु दिगंबर में 12 वर्षों के संगीत अध्ययन के बाद, वह पूरे देश में दौरा किया और लाहौर आने के बाद उन्होंने इसे अपना वर्क प्लेस बनाने का फैसला किया।


इसके बाद उन्होंने 1901 में गंधर्व महाविद्यालय का शुभारंभ किया। उन दिनों में संगीतकारों को समाज में उच्च प्रशंसा में नहीं रखा गया था, लेकिन विष्णु दिगंबर अपने व्यक्तिगत उदाहरण से व्यापक पक्षपात को नष्ट करने में सक्षम थे। उन्हें एहसास हुआ कि सभी महान कला को अपने व्यक्तित्व को आधुनिक जीवन से आकर्षित करना और अपनी सामाजिक योग्यता से वंचित करना पड़ा। यह उनके दृष्टिकोण और तरीकों में खोज और विद्रोही दोनों की तरह था। इंडियन म्यूजिक के लिए उनके द्वारा twirling की एक प्रणाली का आविष्कार किया गया था, और बाद में उन्होंने गंधर्व महाविद्यालय के लिए एक बड़ी संख्या में पाठ्य पुस्तकों को प्रकाशित किया।


वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में भाग लेते थे और अपने संगीत आकर्षण की ताकत से भीड़ को जगाते थे।


उन्होंने भक्ति संगीत की कला में महारत हासिल की और भजन "रघुपति राघव राजा राम" को अपनी मौजूदा संगीत सामग्री को दिया।


गंधर्व महाविद्यालय की स्थापना


विष्णु दिगम्बर पलुस्कर मथुरा के बाद पंजाब घूमते हुए लाहौर पहुंचे और 1901 में उन्होंने गंधर्व महाविद्यालय की स्थापना की। इस स्कूल के जरिए उन्होंने कई संगीत विभूतियों को तैयार किया। हालांकि स्कूल चलाने के लिए उन्हें बाज़ार से कर्ज़ लेना पड़ा। बाद में उन्होंने मुंबई में अपना स्कूल स्थापित किया। कुछ वर्ष बाद आर्थिक कारणों से यह स्कूल नहीं चल पाया और इसके कारण विष्णु दिगम्बर पलुस्कर की संपत्ति भी जब्त हो गई।


संगीतलिपि एवं प्रकाशन कार्य


सन्‌ 1900 के लगभग सर्वांग पूर्ण संगीतलिपि का निर्माण किया। निम्नांकित प्राय: 70 संगीत ग्रंथों का लेखन प्रकाशन (सन्‌ 1902-1930)-


(1) रागप्रवेश (19 भाग), (2) संगीत बालप्रकाश (4 भाग), (3) संगीत बालबोध (5 भाग),


(4) बिहाग, कल्याण, भूपाली, मालकंस रागों का संपूर्ण गायकी सहित 5 पुस्तकें, (5) स्वल्पालाप गायन (4 भाग),


(6) टप्पा गायन, (7) होरी गायन, (8) मृदंग-तवला-पाठ्यपुस्तक (9) सितार पाठ्यपुस्तक (2 भाग),


(10) भजनामृत लहरी (5 भाग) (11) रामनामावली, (12) संगीतनामस्मरणी, (13) भक्तप्रेमलहरी, (14) भजनावली,


(15) रामगुणगान (मराठी), (16) बंगाली गायन, (17) कर्णाटक संगीत, (18) बालादय संगीत (हिंदी 2 भाग, मराठी 1 भाग),


(19) व्यायाम के साथ संगीत (2 भाग), (20) महिला संगीत (2 भाग), (21) राष्ट्रीय संगीत, (22) भारतीय संगीत लेखन पद्धति,


(23) संगीत तत्त्वदर्शक, (24) अंकित अलंकार (25) नारदीय शिक्षा (भाषा टीका सहित),


(26) 1918-1920 में आयोजित संगीत परिषदों की चार रिपोर्टें। 'संगीत सारामृत प्रवाह' नामक मासिक पत्र का सन्‌ 1805 से दशाधिक वर्ष तक नियमित प्रकाशन