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कलाकार

सितारा देवी जीवनी - Biography of Sitara Devi in Hindi Jivani

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सितारा देवी का जन्म उनका जन्म 1920 में कोलकाता में हुआ था। इनका मूल नाम धनलक्ष्मी था और उन्हें घर में धन्नो के नाम से बुलाया जाता था। सितारा देवी का विवाह आठ वर्ष की उम्र में हो गया। उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभालें लेकिन वह स्कूल में पढ़ना चाहती थीं।


स्कूल जाने के लिए जिद के कारण उनका का विवाह टूट गया और उन्हें कामछगढ़ हाई स्कूल में दाखिल कराया गया। वहां अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन कर वे जल्द ही लोकप्रिय हो गईं।


एक अखबार में छपी अपनी बेटी की तारीफ से गदगद पिता ने धन्नो का नाम सितारा देवी रख दिया गया और उनकी बड़ी बहन तारा को उन्हें नृत्य सिखाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। सितारा देवी ने शंभू महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज से भी नृत्य की शिक्षा ग्रहण की। दस वर्ष की उम्र में वह एकल नृत्य से लोगों का मन मोह लेती थीं। अधिकतर वह अपने पिता के एक मित्र के सिनेमा हाल में फिल्म के बीच में पंद्रह मिनट के इंटरवल में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया करती थीं।


नृत्य की लगन के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा और ग्यारह वर्ष की आयु में उनका परिवार मुम्बई चला गया। मुम्बई में उन्होंने जहांगीर हाल में अपना पहला सार्वजनिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यहीं से कथक के विकास और उसे लोकप्रिय बनाने की दिशा में उनके साठ साल लंबे करियर का आरंभ हुआ।


सितारा देवी न सिर्फ कथक बल्कि भरतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोकनृत्यों में पारंगत थीं। वह उस समय की कलाकार हैं जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी।


अपने सुदीर्घ नृत्य कार्यकाल के दौरान सितारा देवी ने देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक ऊर्जस्वित नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है। वह लंदन में प्रतिष्ठित रायल अल्बर्ट और विक्टोरिया हाल तथा न्यूयार्क में कार्नेगी हाल में अपने नृत्य का जादू बिखेर चुकी हैं।


यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ कथक बल्कि भारतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोकनृत्यों में पारंगत हैं। उन्होंने रूसी बैले और पश्चिम के कुछ और नृत्य भी सीखें हैं। सितारा देवी के कथक में बनारस और लखनऊ घराने की तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। वह उस समय की कलाकार हैं। जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी।


60 दशक से भी ज्यादा समय तक एक प्रतिष्ठित डांसर रही सितारा देवी ही थी जो इस विधा को बॉलीवुड में लेकर आईं। इन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान 1969 में मिला। 1975 में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार की घोषणा की गई थी, लेकिन उन्होंने ये इसे ये कहते हुए ठुकरा दिया था कि इस जगत में उनका योगदान बहुत बड़ा है और वो भारत रत्न से कम की उम्मीद नहीं रखती। मात्र 16 वर्ष की आयु में इनके प्रदर्शन को देखकर भावविभोर हुए गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने इन्हें नृत्य सम्राज्ञी की उपाधि दी थी।


नृत्य जीवन


उस समय एक अखबार ने उनके नृत्य प्रदर्शन के बारे में लिखा था, "एक बालिका धन्नो ने अपने नृत्य प्रदर्शन से दर्शकों को चमत्कृत किया।" इस खwबर को उनके पिता ने भी पढा और बेटी के बारे में उनकी राय बदल गई। इसके बाद धन्नो का नाम सितारा देवी रख दिया गया और उनकी बडी बहन तारा को उन्हें नृत्य सिखाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। सितारा देवी ने शंभु महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज से भी नृत्य की शिक्षा ग्रहण की। दस वर्ष की उम्र होने तक वह एकल नृत्य का व्यावसायोक प्रदर्शन करने लगीं। अधिकतर वह अपने पिता के एक मित्र के सिनेमा हाल में फिल्म के बीच में पंद्रह मिनट के मध्यान्तर के दौरान अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया करती थीं। नृत्य की लगन के कारण उन्हें स्कूल छोडना पडा और ग्यारह वर्ष की आयु में उनका परिवार मुम्बई चला गया। मुम्बई में उन्होंने जहांगीर हाल में अपना पहला सार्वजनिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यहीं से कथक के विकास और उसे लोकप्रिय बनाने की दिशा में उनके साठ साल लंबे नृत्य व्यवसाय का आरंभ किया।


        अपने सुदीर्घ नृत्य कार्यकाल के दौरान सितारा देवी ने देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक ऊर्जस्वित नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है। वह लंदन में प्रतिष्ठित रायल अल्बर्ट और विक्टोरिया हाल तथा न्यूयार्क में कार्नेगी हाल में अपने नृत्य का जादू बिखेर चुकी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ कथक बल्कि भारतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोकनृत्यों में पारंगत हैं।


मुंबई आगमन


किसी रूढ़ी को तोड़कर कला की साधना में लीन होने का पुरस्कार उन्हें बिरादरी के बहिष्कार के रूप में मिला। समाज से बहिष्कृत होने के बाद भी सितारा देवी के पिता बिना विचलित हुए अपने काम में लगे रहे। बहुत छोटी उम्र में ही उन्हें फ़िल्म में काम करने का मौका मिल गया। फ़िल्म निर्माता निरंजन शर्मा को अपनी फ़िल्म के लिए एक कम उम्र की नृत्यांगना लड़की चाहिए थी। किसी परिचित की सलाह पर वे बनारस आए और सितारा देवी का नृत्य देखकर उन्हें फ़िल्म में भूमिका दे दी। सितारा देवी के पिता इस प्रस्ताव पर राजी नहीं थे, क्योंकि तब वे छोटी थीं और सीख ही रही थीं। परंतु निरंजन शर्मा ने आग्रह किया और इस तरह वे अपनी माँ और बुआ के साथ मुम्बई आ गईं। कुछ फ़िल्मों में काम करने के अलावा उन्होंने फ़िल्मों में कोरियोग्राफ़ी का काम भी किया।


प्रसिद्धि


        सितारा देवी ने अपने सुदीर्घ नृत्य कार्यकाल के दौरान देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक और ऊर्जा से भरपूर नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वह लंदन में प्रतिष्ठित 'रॉयल अल्बर्ट' और 'विक्टोरिया हॉल' तथा न्यूयार्क के 'कार्नेगी हॉल' में अपने नृत्य का जादू बिखेर चुकी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ़ कथक, बल्कि भरतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोक नृत्यों में पारंगत हैं। उन्होंने रूसी बैले और पश्चिम के कुछ और नृत्य भी सीखें हैं। सितारा देवी के कथक में बनारस और लखनऊ के घरानों के तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। वह उस समय की कलाकार हैं, जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी