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किशन महाराज का जन्म काशी के कबीरचौरा मुहल्ले में 1923 में पारंपरिक रूप से एक संगीतज्ञ के परिवार में हुआ। कृष्ण जन्माष्टमी पर आधी रात को जन्म होने के कारण उनका नाम किशन पड़ा। उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्षों में पिता पंडित हरि महाराज से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की। पिता के देहांत के बाद उनके चाचा एवं पंडित बलदेव सहाय के शिष्य पंडित कंठे महाराज ने उनकी शिक्षा का कार्यभार संभाला।
किशन महाराज को वर्ष 2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें वर्ष 1में पद्मश्री, वर्ष 1में केंद्रीय संगीत नाटक पुरस्कार, वर्ष 1में अली खान पुरस्कार और वर्ष 2001 में लता मंगेश्कर पुरस्कार भी प्रदान किया गया। किशन महाराज का जन्म 1में पारंपरिक रूप से एक संगीतज्ञ के परिवार में हुआ। उन्होंने अपने प्रारंभिक वषर्ों में पिता पंडित हरि महाराज से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की। पिता के देहांत के बाद उनके चाचा एवं पंडित बलदेव सहाय के शिष्य पंडित कंठे महाराज ने उनकी शिक्षा का कार्यभार संभाला। उन्होंने एडिनबर्ग और वर्ष 1में ब्रिटेन में कामनवेल्थ कला समारोह के साथ ही कई अवसरों पर अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर नाम प्रतिष्ठिता अर्जित की। उनके शिष्यों में वर्तमान समय के जानेमाने तबला वादक पंडित कुमार बोस, पंडित बालकृष्ण अय्यर, उसंदीप दास, सुखविंदर सिंह नामधारी सहित अन्य नाम शामिल हैं।
कार्यक्षेत्र
किशन महाराज ने तबले की थाप की यात्रा शुरू करने के कुछ साल के अंदर ही उस्ताद फैय्याज खान, पंडित ओंकार ठाकुर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, पंडित भीमसेन जोशी, वसंत राय, पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान जैसे बड़े नामों के साथ संगत की। कई बार उन्होंने संगीत की महफिल में एकल तबला वादन भी किया। इतना ही नहीं नृत्य की दुनिया के महान हस्ताक्षर शंभु महाराज, सितारा देवी, नटराज गोपी कृष्ण और बिरजू महाराज के कार्यक्रमों में भी उन्होंने तबले पर संगत की। उन्होंने एडिनबर्ग और वर्ष 1965 में ब्रिटेन में कॉमनवेल्थ कला समारोह के साथ ही कई अवसरों पर अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर प्रतिष्ठा अर्जित की। उनके शिष्यों में वर्तमान समय के जानेमाने तबला वादक पंडित कुमार बोस, पंडित बालकृष्ण अय्यर, सुखविंदर सिंह नामधारी सहित अन्य नाम शामिल हैं।
संगीत कैरियर
जब तक वह ग्यारह था, तब तक किशन महाराज ने संगीत कार्यक्रमों में प्रदर्शन करना शुरू किया। कुछ ही वर्षों के भीतर, किशन महाराज फ़ैयाज खान, ओमकारनाथ ठाकुर, बडे गुलाम अली खान, भीमसेन जोशी, रविशंकर, अली अकबर खान, वसंत राय, विलायत खान, गिरिजा देवी, सितारा देवी और कई अन्य लोगों के साथ मंच बांट रहे थे।
महाराज को क्रॉस लय खेलने की क्षमता थी और जटिल गणनाएं उत्पन्न होती थीं, खासकर तिहै पैटर्न में। एक उत्कृष्ट सहयोगी के रूप में जाना जाता है, महाराज बेहद बहुमुखी और किसी भी संगत के साथ खेलने में सक्षम था, यह सतार, सरोद, ध्रुपद, धमर या यहां तक कि नृत्य के साथ भी हो सकता है।
महाराज ने अपने करियर के दौरान कई एकल संगीत कार्यक्रम दिए और श्री शंभू महाराज, सितारा देवी, नटराज गोपी कृष्ण और बिरजू महाराज जैसे कुछ महान नर्तकियों को 'संगठ' भी दिया।
उनकी सभी रचनाओं में, मृदांगम विदवान, "पालघाट रघु" के साथ उनका "तली वाद्य कचेरी" बाहर खड़ा था। 1 9 65 में यूनाइटेड किंगडम में एडिनबर्ग फेस्टिवल और कॉमनवेल्थ आर्ट्स का त्यौहार समेत पूरे विश्व में कई प्रतिष्ठित घटनाओं में महाराज ने बड़े पैमाने पर दौरा किया और भाग लिया
महाराज ने 1 9 73 में पद्म श्री और 2002 में पद्मविभूषण जीता। उन्होंने बेनारास पं। के तबला वादक की बीना देवी भाई से विवाह किया था। अनोखे लाल मिश्रा
बिंदास जीवन शैली
किशन महाराज का ज़िंदगी जीने का अन्दाज़ बहुत बिंदास रहा। उन्होंने ज़िंदगी को हमेशा 'आज' के आइने में देखा और अपनी मर्जी के मुताबिक बिंदास जिया। लुंगी कुर्ते में पूरे मुहल्ले की टहलान और पान की दुकान पर मित्रों के साथ जुटान ताज़िंदगी उनका शगल बना रहा। मर्जी हुई तो भैंरो सरदार को एक्के पर साथ बैठाया और घोड़ी को हांक दिया। तबीयत में आया तो काइनेटिक होंडा में किक मारी और पूरे शहर का चक्कर मार आए।
दिनचर्या
उनकी दिनचर्या पूजा पाठ, टहलना, रियाज, अपने शौक़ पूरे करना, मित्रों से गप्पे मारना था। यह सब ज़िंदगी की आखिरी घड़ी तक जारी रहा। वे बड़ी बेबाकी से कहते थे कि मैं कोई उलझन या दुविधा नहीं पालता बल्कि उसे जल्दी से जल्दी दूर कर देता हूं। ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी। साठ साल पहले शेविंग के दौरान मूंछें सेट करने में एक तरफ छोटी तो दूसरी तरफ बड़ी हो जाने की दिक्कत महसूस की तो झट से उसे पूरी तरह साफ़ करा दिया। इसके बाद फिर कभी मूंछ रखने की जहमत नहीं उठाई। उनकी दिनचर्या बड़ी नियमित थी। प्रात: छह बजे तक उठ जाते थे। बगीचे की सफाई, चिड़ियों को दाना पानी और फिर टहलने निकल जाते थे।
पसंद-नापसंद
किशन महाराज का खानपान का भी अपना अलग स्टाइल था। दाल, रोटी, चावल के साथ छेना या केला और लौकी चाप उन्हें काफ़ी पसंद था। गर्मी के सीजन में दोपहर में सप्ताह में दो तीन रोज सत्तू भी खाते थे। परंपरागत बनारसी नाश्ता पूड़ी-कचौड़ी उन्हें पसंद नहीं था। कभी-कभार किसी पार्टी में पंडित जी पैंट-शर्ट में भी जलवा बिखेरते दिख जाते थे। मगर अलीगढ़ी पायजामा और कुर्ता उनका पसंदीदा पहनावा था।
पुरस्कार व सम्मान
किशन महाराज को वर्ष 2002 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें वर्ष 1973 में पद्मश्री, वर्ष 1984 में केन्द्रीय संगीत नाटक पुरस्कार, वर्ष 1986 में उस्ताद इनायत अली खान पुरस्कार, दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार और ताल विलास के अलावा उत्तरप्रदेश रत्न, उत्तरप्रदेश गौरव भोजपुरी रत्न, भागीरथ सम्मान और लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान से भी नवाजा गया