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हकीम अजमल ख़ान या अजमल ख़ान एक यूनानी चिकित्सक और भारतीय मुस्लिम राष्ट्रवादी राजनेता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में दिल्ली में तिब्बिया कॉलेज की स्थापना करके भारत में यूनानी चिकित्सा का पुनरुत्थान करने के लिए जाना जाता है और साथ ही एक रसायनज्ञ डॉ॰ सलीमुज्ज़मन सिद्दीकी को सामने लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है जिनके यूनानी चिकित्सा में उपयोग होने वाले महत्वपूर्ण चिकित्सीय पौधों पर किये गए आगामी शोधों ने इसे एक नई दिशा प्रदान की थी।. वे गाँधी जी के निकट सहयोगी थे। उन्होने असहयोग आन्दोलन (सत्याग्रह) में भाग लिया था, खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व किया था, साथ ही वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुये थे,
यूनानी चिकित्सक
सन 1892 में यूनानी चिकित्सा Homeopathy की शिक्षा पूरी करने के बाद वे रामपुर के नबाब का मुख्य चिकित्सक बन गए। धीरे-धीरे वे मशहूर होते गए और ऐसा माना जाने लगा कि उनके पास कोई दिव्य शक्ति है जो जादुई ढंग से लोगों का रोग ठीक कर देती है। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें चिकित्सा का इतना ज्ञान था कि वे सिर्फ मरीज की सूरत देखकर ये बता सकते थे कि उसे क्या बीमारी disease है। delhi में अगर उनके पास कोई इलाज के लिए आता था तो वे उसका इलाज बिलकुल मुफ्त free करते थे पर दिल्ली से बहार जाने के लिए वे हर दिन का 1000 रुपया लेते थे जो उस समय के हिसाब से बहुत ज्यादा था। इससे उनकी काबिलियत का पता चलता है।
उन्होंने यूनानी चिकित्सा Homeopathy पद्धति के विकास के लिए बहुत प्रयत्न और कार्य किये। इस दिशा में कार्य करते हुए उन्होंने 3 महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की – दिल्ली में सेंट्रल कॉलेज, हिन्दुस्तानी दवाखाना और आयुर्वेद एवम यूनानी टिब्बिया कॉलेज। इन सब संस्थानों ने न सिर्फ इस चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में शोध किया बल्कि यूनानी पद्धति Homeopathy को विलुप्त होने से बचाया भी। उन्होंने अपने कठिन परिश्रम से लगभग मृतप्राय इस महत्वपूर्ण चिकित्सा पद्धति को ब्रिटिश काल में भी जीवित रखा।
Hakim Ajmal Khan ने यूनानी चिकित्सा पद्धति में पश्चिमी चिकित्सा पद्धति के कुछ सिद्धांतों को शामिल करने का सुझाव दिया पर वहीँ दूसरी ओर इस पद्धति से सम्बन्ध रखने वाला एक और धड़ा था जो यूनानी चिकित्सा पद्धति के मूल स्वरुप को वैसा ही रखना चाहता था।
राजनीति में प्रवेश
1918 में हकीम अजमल ख़ाँ कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। हकीम साहब के राजनीति में प्रवेश करते ही उनका घर (उनका पुश्तैनी घर आज भी बल्लीमारान में शरीफ मंज़िल के नाम से प्रसिद्ध है) राजनीतिज्ञों का केंद्र बन गया। उन दिनों शरीफ मंज़िल में नेताओं के आने जाने से बहुत चहल पहल बनी रहती थी। हकीम साहब एक बड़े तख्त पर बैठ कर नेताओं से विचार विमर्श करते रहते थे। गुप्त बात के लिए आँगन में लगे हुए छोटे कमरे में बैठते थे। उस छोटे से कमरे में ना जाने कितनी समस्याओं का समाधान किया गया था, जिसमें आजकल सन्नाटा छाया रहता है। हकीम साहब की योजना के अनुसार 30 मार्च, 1919 ई. को दिल्ली में सबसे बड़ी हड़ताल हुई थी। इस हड़ताल को सफल बनाने के लिए उन्होंने बहुत दौड़-धूप की थी। उनके इस कार्य की बड़े-बड़े नेताओं ने दिल खोलकर प्रशंसा की थी। 1919 ई. के अन्तर में उनके प्रयत्नों से ही शहीदों का शानदार स्मारक बना, जिसकी देश के बड़े-बड़े नेताओं ने प्रशंसा की। 1921 में आपने कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन की और ख़िलाफ़त कांग्रेस की अध्यक्षता की। ‘ऑल इण्डिया गो रक्षा कांफ़्रेंस’, जिसके अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे, स्वागत समिति की अध्यक्षता का दायित्व भी हकीम साहब ने ही उठाया था। उस सम्मेलन में मुसलमानों से अपील की गई थी कि, वे इस मामले में हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करें। हकीम साहब ने 1918 ई. से लेकर 1927 तक स्वतंत्रता आन्दोलन की राजनीति में खुल कर भाग लिया था। 1927 ई. में यह महापुरुष परलोक सिधार गया था। 9 वर्षों के थोड़े से समय में उन्होंने ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य किए, जिसके कारण उन्हें युगों-युगों तक याद किया जाता रहेगा।
राष्ट्रवाद
अजमल ख़ान के परिवार के द्वारा शुरू किये गए उर्दू साप्ताहिक 'अकमल-उल-अख़बार' के लिए लेखन कार्य आरम्भ करने के पश्चात से उनके जीवन ने चिकित्सा के क्षेत्र से राजनीति के क्षेत्र की ओर रुख कर लिया। ख़ान उस मुस्लिम दल का नेतृत्व भी कर रहे थे, जो 1906 में शिमला में भारत के वायसरॉय को ज्ञापन सौपने के लिए किया गया था। उसी साल, 30 दिसम्बर 1906 को जब इशरत मंजिल पैलेस में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना की गयी तब वे भी ढाका में मौजूद थे। एक समय जब कई मुस्लिम नेताओं को गिरफ्तार किया गया, तब डॉ अजमल ख़ान ने मदद के लिए महात्मा गांधी से संपर्क किया। इसी प्रकार, प्रसिद्ध खिलाफत आन्दोलन में गांधीजी उनसे और अन्य मुस्लिम नेताओं से जुड़े, जैसे मौलाना आजाद, मौलाना मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली. अजमल ख़ान ऐसे एकमात्र व्यक्ति भी हैं जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और ऑल इंडिया खिलाफत कमेटी का अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। उन्होंने अपनी यूनानी पढ़ाई दिल्ली के सिद्दीकी दवाखाना के हकीम अब्दुल जमील की देखरेख में पूरी की