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चार्ल्स डार्विन (१२ फरवरी, १८०९ – १९ अप्रैल १८८२) ने क्रमविकास के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनका शोध आंशिक रूप से १८३१ से १८३६ में एचएमएस बीगल पर उनकी समुद्र यात्रा के संग्रहों पर आधारित था। इनमें से कई संग्रह इस संग्रहालय में अभी भी उपस्थित हैं। डार्विन महान वैज्ञानिक थे - आज जो हम सजीव चीजें देखते हैं, उनकी उत्पत्ति तथा विविधता को समझने के लिए उनका विकास का सिद्धान्त सर्वश्रेष्ठ माध्यम बन चुका है। संचार डार्विन के शोध का केन्द्र-बिन्दु था। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक जीवजाति का उद्भव ऑरिजिन ऑफ स्पीसीज़ प्रजातियों की उत्पत्ति सामान्य पाठकों पर केंद्रित थी। डार्विन चाहते थे कि उनका सिद्धान्त यथासम्भव व्यापक रूप से प्रसारित हो।
प्रारंभिक जीवन :
चार्ल्स रोबर्ट डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड के शोर्पशायर के श्रेव्स्बुरी में हुआ था। उनका जन्म उनके पारिवारिक घर दी माउंट में हुआ था। चार्ल्स अपने समृद्ध डॉक्टर रोबर्ट डार्विन की छः संतानों में पांचवे थे। रोबर्ट डार्विन एक मुक्त विचारक थे। चार्ल्स को बचपन से ही प्रकृति में रूचि थी। 1817 में 8 साल की उम्र में ही धर्मोपदेशक द्वारा चलायी जा रही स्कूल में पढ़ते थे और प्रकृति के इतिहास के बारे में जानना चाहते थे। उसी साल जुलाई में उनकी माता का देहांत हो गया था।
इसके बाद सितंबर 1818 से चार्ल्स अपने बड़े भाई इरेस्मस के साथ रहने लगे थे और एंग्लिकन श्रेव्स्बुर्री स्कूल में पढ़ते लगे। चार्ल्स डार्विन से 1825 की गर्मिया प्रशिक्षाण ग्रहण करने वाले डॉक्टर की तरह बितायी थी और अपने पिता के कामो में भी वे सहायता करते थे। अपने भाई के साथ अक्टूबर 1825 तक एडिनबर्घ मेडिकल स्कूल में जाने से पहले तक चार्ल्स यही काम करते थे। लेकिन मेडिकल स्कूल में उन्हें ज्यादा रूचि नही थी इसीलिये वे मेडिकल को अनदेखा करते रहते। बाद में 40 घंटो के लंबे सेशन में उन्होंने जॉन एड्मोंस्टोन से चर्म प्रसाधन सिखा।
बीगल पर विश्व भ्रमण हेतु अपनी समुद्री-यात्रा को वे अपने जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना मानते थे जिसने उनके व्यवसाय को सुनिश्चित किया। समुद्री-यात्रा के बारे में उनके प्रकाशनों तथा उनके नमूने इस्तेमाल करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के कारण, उन्हें लंदन की वैज्ञानिक सोसाइटी में प्रवेश पाने का अवसर प्राप्त हुआ। 1859 में डार्विन ने अपनी किताब “ऑन दी ओरिजिन ऑफ़ स्पिसेस” में मानवी विकास की प्रजातियों का विस्तृत वर्णन भी किया था।
1870 से वैज्ञानिक समाज और साथ ही साधारण मनुष्यों ने भी उनकी इस व्याख्या को मानना शुरू किया। 1930 से 1950 तक कयी वैज्ञानिको ने जीवन चक्र को बताने की कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नही मिल पायी। लेकिन डार्विन ने सुचारू रूप से वैज्ञानिक तरीके से जीवन विज्ञान में जीवन में समय के साथ-साथ होने वाले बदलाव को बताया था।
समुद्र से डरने वाले और आलीशान मकान में रहने वाले चार्ल्स ने पांच वर्ष समुद्री यात्रा में बिठाये और एक छोटे से केबिन के आधे भाग में गुजारा किया | जगह जगह पत्तिया , लकडिया ,पत्थर ,कीड़े और अन्य जीव तथा हड्डिया एकत्रित की | उन दिनों फोटोग्राफी की व्यवस्था नही थी | अत: उन्हें सारे नमूनों पर लेबल लगाकर इंग्लैंड भेजना होता था | अपने काम के सिलसिले में वह दस घंटे घुडसवारी करते थे और मीलो पैदल चला करते थे | जगह जगह खतरों का सामना करना , लुप्त प्राणियों के जीवाश्म ढूँढना , अनजाने जीवो को निहारना ही उनके जीवन की नियती थी |
गलापगोज की यात्रा चार्ल्स के लिए निर्णायक सिद्ध हुयी | इस द्वीप में उन्हें अद्भुद कछुए और छिपकलिया मिली | उन्हें विश्वास हो गया कि आज जो दिख रहा है कल वैसा नही था | प्रकृति में सद्भाव और स्थिरता दिखाई अवश्य देती थी , पर इसके पीछे वास्तव में सतत संघर्ष और परिवर्तन चलता रहता है | लम्बी यात्रा की थकान अभी उतरी भी नही थी कि Charles Darwin चार्ल्स ने आगे का अन्वेषण तथा उस पर आधारित लेखन आरम्भ कर दिया था | बहुत थोड़े से लोगो ने उनका हाथ बंटाया | समस्त कार्य चार्ल्स को स्वयं करना पड़ा |
`डार्विन के बुलडाग´ नामक क्लबों की स्थापना कर उसकी सदस्यता दी जा रही है। ज्ञातव्य है कि डार्विनवाद के कट्टर समर्थक के रुप में जीव विज्ञानी थामस हेनरी हक्सले (Thomas Henry Huxley) को एक खास पहचान मिली थी और उनको `डार्विन का बुलडाग´ (Darwin's Bulldog) कहा जाता था। डार्विन पर विभिन्न प्रसारण माध्यमों में रोचक व्याख्यानों की श्रृंखला आयोजित की जा रही है। भोजनपूर्व व्याख्यानों में जीवन की उत्पत्ति के प्रतीकस्वरूप `प्रिमोर्डियल सूप´ के सुस्वाद नुस्खों से तैयार सूप भी सर्व होंगे, रात्रि भोजन पूर्व ऐसे व्याख्यान जीव की उत्पत्ति और विकास की धारणा को लोकप्रियता प्रदान करेंगे।
प्रहसन-नाटक जिसमें कपि-वानर के भेष में बच्चे विकासवाद की गाथा का प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण करेंगे। थामस हक्सले और बिशप विल्चर फोर्स (Bishop Wilberforce) के बीच हुए प्रसिद्ध विवाद की भी नाटकीय पुन:प्रस्तुतियाँ भी होंगी। श्रेष्ट वैज्ञानिको का कार्य स्थल आमतौर पर कोई प्रतिष्टित संस्था या शिक्षा केंद्र ही कर रहा है। अरस्तु से लेकर न्यूटन ,फैराडे तक कोई ना कोई रॉयल सोसाइटी, रॉयल संस्थान आदि मिल ही गया था, जो काम के खर्च दोनों में हाथ बंटाता था।
परन्तु चार्ल्स डार्विन डार्विन ने अपना कार्य ग्रामीण इलाके के दूर दराज स्तिथ मकान में शुरू किया। अपनी पैतृक सम्पति के रूप में प्राप्त सारा धन उन्होंने इस कार्य पर लगा दिया। जिस प्रकार का काम वो कर रहे थे उसने ना कोई पैसा लगाने के लिए आगे आया और ना ही चार्ल्स ने उसके लिए विशेष प्रयास ही किये। चार्ल्स डार्विन ने मानवी इतिहास के सबसे प्रभावशाली भाग की व्याख्या दी थी और इसी वजह से उन्हें कयी पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया था।
सन 1868 में चार्ल्स डार्विन ने दूसरी पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक का नाम था ‘द वेरीएशन ऑफ एनीमल्स एंड प्लॅंट्स दॉमेस्तिकेशन’ इस पुस्तक मे दर्शाया गया था की गिने-चुने जंतुओं का चयन करके कबूतरों, कुत्तों और दूसरे जानवरों की कई नस्ले पैदा की जा सकती है। इस प्रकार नए पेड़-पौधों की भी नई नस्ले पैदा की जा सकती है। 1839 में डार्विन ने जोशिया वैजबुड से विवाह कर लिया । फिर वे लंदन छोड़कर कैंट-डाउन के शान्त वातावरण में रहने लगे ।
डार्विन ने यह प्रतिपादित किया कि परिवर्तनशील अवयवों में जो उानुकूल होते है, वे बच जाते हैं । प्रतिकूल अवयव अनाकूलन की स्थिति में समाप्त हो जाते हैं । अनुकूल की प्रकृति सुरक्षित रहना है और प्रतिकूल की नष्ट हो जाना है । उन्होंने मनुष्य सहित जीवों के विकास की प्रक्रिया को भी समझाया । उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द ओरिजन ऑफ स्पीशिज’ में परम्परागत चिन्तन को एक चुनौती देते हुए यह प्रमाणित किया । जीवन में, प्रकृति में, विभिन्न प्रकार के अनगिनत जीव अस्तित्व में आये, जिनगें मनुष्य भी एक प्रकार का जीव रहा है ।
जो भोजन के लिए जलवायु एवं शत्रुओं के विरुद्ध संघर्ष करने में सर्वाधिक समर्थ थे, वे ही बच पाये । जो ऐसा नहीं कर पाये, उनकी प्रजातियां नष्ट हो गयीं । मनुष्य विकास की प्रक्रिया में अन्य जीवों की अपेक्षा कहीं अधिक आगे पहुंच गया है । वह अपने से मिलते-जुलते छोटी पूंछ वाले बन्दर से भी सभी स्तरों पर आगे निकल चुका है । मनुष्य के विकास की कहानी को डार्विन ने जिस ढंग से प्रतिपादित किया, वैसा पूर्व के विकासवादी वैज्ञानिक नहीं कर पाये । 24 नवम्बर, 1859 को प्रकाशित उनकी द ओरिजन ऑफ स्पीशिख पुस्तक के 1 हजार 250 प्रतियों के संस्करण उसी दिन बिक गये ।
जेम्स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक ने 1953 मे एक ऐसी खोज की, जिससे चार्ल्स डार्विन द्वारा प्रतिपादित अधिकतर सिद्धांतों की पुष्टि होती है. उन्होंने जीवधारियों के भावी विकास के उस नक्शे को पढ़ने का रासायनिक कोड जान लिया था, जो हर जीवधारी अपनी हर कोषिका में लिये घूमता है. यह नक्शा केवल चार अक्षरों वाले डीएनए कोड के रूप में होता है. अपनी खोज के लिए 1962 में दोनो को चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मिला.
बीगल की यात्रा के बाद डार्विन ने पाया कि बहुत से पौधों और जीवों की प्रजातियों में आपस का संबंध है। डार्विन ने महसूस किया कि बहुत सारे पौधों की प्रजातियां एक जैसी हैं और उनमें केवल थोड़ा बहुत फर्क है। इसी तरह से जीवों और कीड़ों की कई प्रजातियां भी बहुत थोड़े फर्क के साथ एक जैसी ही हैं। डार्विन कोई जल्दबाज़ी नहीं करना चाहते थे, उन्होंने HMS बीगल की यात्रा के 20 साल बाद तक कई पौधों और जीवों की प्रजातियां का अध्ययन किया और 1858 में दुनिया के सामने क्रमविकास का सिद्धांत दिया।
क्रमविकास का सिद्धांत :
• विशेष प्रकार की कई प्रजातियों के पौधे पहले एक ही जैसे होते थे, पर संसार में अलग अलग जगह की भुगौलिक प्रस्थितियों के कारण उनकी रचना में परिवर्तन होता गया जिससे उस एक जाति की कई प्रजातियां बन गई।
• पौधों की तरह जीवों का भी यही हाल है, मनुष्य के पूर्वज किसी समय बंदर हुआ करते थे, पर कुछ बंदर अलग से विशेष तरह से रहने लगे और धीरे – धीरे जरूरतों के कारण उनका विकास होता गया और वो मनुष्य बन गए।
मृत्यु :
19 अप्रैल 1882 को इस महान वैज्ञानिक की 74 साल की उम्र में मृत्यु हो गई। इन्हें वेस्टमिनिस्टर एब में दफनाया गया। इनकी समाधि से कुछ ही दूर न्यूटन की समाधि है। इन्होने एम्मवेज़ावूद नाम की महिला से शादी की थी। इनके 19 बच्चे हुए जिनमें से केवल 7 जिंदा रहे। जिनमे 4 बेटे उच्च श्रेणी के वैज्ञानिक हुए।