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बिरजू महाराज भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य कलाकारों में से एक हैं। वे भारतीय नृत्य की 'कथक' शैली के आचार्य और लखनऊ के 'कालका-बिंदादीन' घराने के एक मुख्य प्रतिनिधि हैं। ताल और घुँघुरूओं के तालमेल के साथ कथक नृत्य पेश करना एक आम बात है, लेकिन जब ताल की थापों और घुँघुरूओं की रूंझन को महारास के माधुर्य में तब्दील करने की बात हो तो बिरजू महाराज के अतिरिक्त और कोई नाम ध्यान में नहीं आता। बिरजू महाराज का सारा जीवन ही इस कला को क्लासिक की ऊँचाइयों तक ले जाने में ही व्यतीत हुआ है। उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्म विभूषण' (1986) और 'कालीदास सम्मान' समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें 'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' और 'खैरागढ़ विश्वविद्यालय' से 'डॉक्टरेट' की मानद उपाधि भी मिल चुकी है।
बिरजू महाराज का जन्म 4 फ़रवरी, 1938 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश के 'कालका बिन्दादीन घराने' में हुआ था। पहले उनका नाम 'दुखहरण' रखा गया था, जो बाद में बदल कर 'बृजमोहन नाथ मिश्रा' हुआ।[ इनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था, जो 'लखनऊ खराने' से थे और अच्छन महाराज के नाम से जाने जाते थे। अच्छन महाराज की गोद में महज तीन साल की उम्र में ही बिरजू की प्रतिभा दिखने लगी थी। इसी को देखते हुए पिता ने बचपन से ही अपने यशस्वी पुत्र को कला दीक्षा देनी शुरू कर दी। किंतु इनके पिता की शीघ्र ही मृत्यु हो जाने के बाद उनके चाचाओं, सुप्रसिद्ध आचार्यों शंभू और लच्छू महाराज ने उन्हें प्रशिक्षित किया। कला के सहारे ही बिरजू महाराज को लक्ष्मी मिलती रही। उनके सिर से पिता का साया उस समय उठा, जब वह महज नौ साल के थे।
इन्होंने विभिन्न प्रकार की नृत्यावालियों जैसे गोवर्धन लीला, माखन चोरी, मालती-माधव, कुमार संभव व फाग बहार इत्यादि की रचना की। सत्यजीत राॅय की फिल्म ’शतरंज के खिलाड़ी’ के लिए भी इन्होंने उच्च कोटि की दो नृत्य नाटिकाएं रचीं। इन्हें ताल वाद्यों की विशिष्ट अंतप्रेरणा भरी समझ थी, जैसे तबला, पखावज, ढोलक, नाल और तार वाले वाद्य वायलिन, स्वर मंडल व सितार इत्यादि के सुरों का भी इन्हें गहरा ज्ञान था। इन्होंने हजारों संगीत प्रस्तुतियां भारत एंव भारत के बहार भी दीं।
इन महान् शख्सियत ने गुरू की भूमिका में अपनी प्रतिभा को कई कलाकारों में अधिरोपित किया और नए कलाकारों को दुनिया से परिचित करवाया। 1998 में अवकाश ग्रहण करने से पूर्व पंडित बिरजू महाराज ने संगीत भारती, भारतीय कला कंेद्र में अध्ययन किया व दिल्ली के कत्थक केंद्र के प्रभारी भी रहे। इनके दो प्रतिभाशाली पुत्र श्री जयकिशन और दीपक महाराज भी इन्हीं के पदचिह्नों पर अग्रसरित हैं। अवकाश प्राप्त कर लेने के बाद भी इनके द्वारा नई प्रतिभाओं की कलमें तराशी जा रही हैं।
बिरजू महाराज ने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त किए और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार ’संगीत नाटक अकादमी’, ’पद्म विभूषण’ 1956 में प्राप्त किया। मध्य प्रदेश सरकार सरकार द्वारा इन्हें ’कालिदास सम्मान’ मिला व ’सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’, ’एस एन ए अवार्ड’ व ’संगम कला अवार्ड’ भी इन्हें प्राप्त हुए। इन्हें नेहरू फैलोशिप के अलावा दो डाॅक्टरेट की मानद उपाधियां भी प्राप्त हुईं। इनका समर्पण, अभ्यास व दक्षता का करिशमा ही है कि यह भारत के महानतम् कलाकारों में से एक माने जाते हैं।
व्यावसायिक जीवन
बिरजू महाराज ने मात्र १३ वर्ष की आयु में ही नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय कला केन्द्र में सिखाना आरम्भ किया। कुछ समय बाद इन्होंने कत्थक केन्द्र (संगीत नाटक अकादमी की एक इकाई) में शिक्षण कार्य आरम्भ किया। यहां ये संकाय के अध्यक्ष थे तथा निदेशक भी रहे। तत्पश्चात १९९८ में इन्होंने वहीं से सेवानिवृत्ति पायी। इसके बाद कलाश्रम नाम से दिल्ली में ही एक नाट्य विद्यालय खोला।
इन्होंने सत्यजीत राय की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी की संगीत रचना की, तथा उसके दो गानों पर नृत्य के लिये गायन भी किया। इसके अलावा वर्ष २००२ में बनी हिन्दी फ़िल्म देवदास में एक गाने काहे छेड़ छेड़ मोहे का नृत्य संयोजन भी किया। इसके अलावा अन्य कई हिन्दी फ़िल्मों जैसे डेढ़ इश्किया, उमराव जान तथा संजय लीला भन्साली निर्देशित बाजी राव मस्तानी में भी कत्थक नृत्य के संयोजन किये।
प्रमुख कार्य
बिरजू महाराज कथक नृत्य के लखनऊ कालका-बिंदडिन घराने का प्रमुख प्रतिपादक है, और दिल्ली में नृत्य स्कूल कलशराम के संस्थापक हैं जो कथक और संबंधित विषयों के क्षेत्र में प्रशिक्षण देने पर केंद्रित हैं। स्कूल में वे परंपरागत मापदंडों का उपयोग नई प्रस्तुतियों के नृत्य के लिए करते हैं, क्योंकि वह दर्शकों को व्यक्त करने की इच्छा रखते हैं कि शास्त्रीय शैली बहुत ही आकर्षक, दिलचस्प और सम्मानजनक हो सकती है।
निजी जीवन और विरासत
बिरजू महाराज पांच बच्चों का पिता हैं: तीन बेटियां और दो बेटे उनके तीन बच्चे, ममता महाराज, दीपक महाराज और जय किशन महाराज भी अपने अधिकारों में कथक नर्तकियों के नाम हैं।
पुरस्कार एवं सम्मान
बिरजू महाराज को अपने क्षेत्र में आरम्भ से ही काफ़ी प्रशंसा एवं सम्मान मिले, जिनमें १९८६ में पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख हैं। इनके साथ ही इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि मानद मिली।
२०१६ में हिन्दी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में "मोहे रंग दो लाल " गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिये फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला।
२००२ में लता मंगेश्कर पुरस्कार।
भरत मुनि सम्मान
२०१२ मे सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन हेतु राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: फिल्म विश्वरूपम के लिये।
२०१६ का सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन हेतु फिल्मफेयर पुरस्कार: फिल्म बाजीराव मस्तानी