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कवि

बिहारी लाल जीवनी - Biography Of Bihari Lal in Hindi Jivani

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• नाम : बिहारी लाल।

• जन्म : संवत् 1595 के आसपास, ग्वालियर, मध्य प्रदेश।

• पिता : केशवराय ।

• माता : ।

• पत्नी/पति : ।


प्रारम्भिक जीवन :


        महाकवि बिहारीलाल का जन्म 1603 के लगभग ग्वालियर में हुआ। उनके पिता का नाम केशवराय था व वे माथुर चौबे जाति से संबंध रखते थे। बिहारी का बचपन बुंदेल खंड में बीता और युवावस्था ससुराल मथुरा में व्यतीत की। उनके एक दोहे से उनके बाल्यकाल व यौवनकाल का मान्य प्रमाण मिलता है:



जनम ग्वालियर जानिए खंड बुंदेले बाल।


तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल।।



        बिहारी की एकमात्र रचना सतसई (सप्तशती) है। यह मुक्तक काव्य है। इसमें 719 दोहे संकलित हैं। कतिपय दोहे संदिग्ध भी माने जाते हैं। सभी दोहे सुंदर और सराहनीय हैं तथापि तनिक विचारपूर्वक बारीकी से देखने पर लगभग २०० दोहे अति उत्कृष्ट ठहरते हैं। 'सतसई' में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। ब्रजभाषा ही उस समय उत्तर भारत की एक सर्वमान्य तथा सर्व-कवि-सम्मानित ग्राह्य काव्यभाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी। इसका प्रचार और प्रसार इतना हो चुका था कि इसमें अनेकरूपता का आ जाना सहज संभव था। बिहारी ने इसे एकरूपता के साथ रखने का स्तुत्य सफल प्रयास किया और इसे निश्चित साहित्यिक रूप में रख दिया। इससे ब्रजभाषा मँजकर निखर उठी।


        सतसई को तीन मुख्य भागों में विभक्त कर सकते हैं- नीति विषयक, भक्ति और अध्यात्म भावपरक, तथा शृगांरपपरक। इनमें से शृंगारात्मक भाग अधिक है। कलाचमत्कार सर्वत्र चातुर्य के साथ प्राप्त होता है। शृंगारात्मक भाग में रूपांग सौंदर्य, सौंदर्योपकरण, नायक-नायिकाभेद तथा हाव, भाव, विलास का कथन किया गया है। नायक-नायिकानिरूपपण भी मुख्त: तीन रूपों में मिलता है- प्रथम रूप में नायक कृष्ण और नायिका राधा है। इनका चित्रण करते हुए धार्मिक और दार्शनिक विचार को ध्यान में रखा गया है। इसलिए इसमें गूढ़ार्थ व्यंजना प्रधान है, और आध्यात्मिक रहस्य तथा धर्ममर्म निहित है। द्वितीय रूप में राधा और कृष्ण का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया किंतु उनके आभास की प्रदीप्ति दी गई है और कल्पनादर्श रूप रौचिर्य रचकर आदर्श चित्र विचित्र व्यंजना के साथ प्रस्तुत किए गए हैं। 


निधन : 


        सन 1663 में उनकी मृत्यु हो गई।


• बिहारीलाल की एकमात्र रचना 'बिहारी सतसई' है। यह मुक्तक काव्य है। इसमें 719 दोहे संकलित हैं। 'बिहारी सतसई' श्रृंगार रस की अत्यंत प्रसिद्ध और अनूठी कृति है। इसका एक-एक दोहा हिन्दी साहित्य का एक-एक अनमोल रत्न माना जाता है। बिहारीलाल की कविता का मुख्य विषय श्रृंगार है। उन्होंने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का वर्णन किया है। संयोग पक्ष में बिहारीलाल ने हाव-भाव और अनुभवों का बड़ा ही सूक्ष्म चित्रण किया हैं। उसमें बड़ी मार्मिकता है। संयोग का एक उदाहरण देखिए-


बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय ।


सौंह करे, भौंहनु हंसे दैन कहे, नटि जाय ।।



• बिहारीलाल का वियोग, वर्णन बड़ा अतिशयोक्ति पूर्ण है। यही कारण है कि उसमें स्वाभाविकता नहीं है, विरह में व्याकुल नायिका की दुर्बलता का चित्रण करते हुए उसे घड़ी के पेंडुलम जैसा बना दिया गया है-


इति आवत चली जात उत, चली, छःसातक हाथ ।


चढ़ी हिंडोरे सी रहे, लगी उसासनु साथ ।।



पुस्तकें :


• बिहारी सतसई / बिहारी

• बिहारी के दोहे

• बिहारी लाल के पचीस दोहे / बिहारी


काव्य :


• माहि सरोवर सौरभ लै 

• है यह आजु बसन्त समौ 

• बौरसरी मधुपान छक्यौ 

• जाके लिए घर आई घिघाय 

• खेलत फाग दुहूँ तिय कौ 

• नील पर कटि तट 

• जानत नहिं लगि मैं 

• वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ 

• गाहि सरोवर सौरभ लै 

• बिरहानल दाह दहै तन ताप 

• सौंह कियें ढरकौहे से नैन 

• केसरि से बरन सुबरन 

• रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ 

• हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ 

• उड़ि गुलाल घूँघर भई 

• मैं अपनौ मनभावन लीनों

• पावस रितु बृन्दावनकी