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प्रेरणादायक

शैतान सिंह जीवनी - Biography of Shaitan Singh in Hindi Jivani

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परमवीर मेजर शैतान सिंह (1 दिसम्बर 1924 तथा मृत्यु 18 नवम्बर 1962) एक भारतीय सेना के एक अधिकारी थे। इन्हें मृत्यु के पश्चात परमवीर चक्र का सम्मान दिया गया।इनका निधन 1962 के भारत-चीन युद्ध में हुआ था , इन्होंने अपने वतन के लिए काफी संघर्ष किया लेकिन अंत में शहीद हो गये तथा भारत देश का नाम रौशन कर गये।


मेजर शैतानसिंह भाटी का जन्म 1 दिसंबर 1924 को जोधपुर (राजस्थान) में हुआ। उनके पिता हेमसिंह भाटी भी सेना में लेफ्ट‍िनेंट कर्नल थे। 1962 में भारत-चीन युद्ध में मेजर शैतान सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 13 कुमायूं सी कंपनी के मेजर शैतान सिंह रेजांग ला मोर्चे पर चीनी सेना का बहादुरी से मुकाबला करते रहे और 18 नवंबर 1962 को शहीद होने से पहले तक भी वे चुशूर सेक्टर में 17 हजार फुट की ऊंचाई पर चीन की गोला-बारूद से लैस भारी सेना का डटकर मुकाबला करते रहे।


 एक स्थिति में जब सिंह दुश्मन से घिर गए, तब भी उन्होंने बहादुरी से मुकाबला करते हुए अपनी टुकड़ी को संगठित कर ठिकानों पर तैनात किया और उनका हौसला बढ़ाया, लेकिन जब दुश्मन की एक गोली उनकी बांह में लगी और उनका पैर भी जख्‍मी हो गया, तो उन्होंने सैनिकों को खुद को वहीं छोड़ने और दुश्मन का सामना करने का आदेश दिया। दुश्मन से लड़ते हुए एक-एक कर मेजर के जवान शहीद हो गए। बर्फ से ढंके उस क्षेत्र में मेजर सिंह का मृत शरीर 3 महीने बाद युद्धक्षेत्र में मिल पाया। मरणोपरांत शैतानसिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।


सैन्य कार्रवाई


1962 में चीन-भारतीय युद्ध में, शैतान सिंह की अगुवाई वाली 13 वीं कुमाऊं बटालियन की 'अहिर' कंपनी ने रेजांग ला में यह महत्वपूर्ण स्थान रखे, जो लद्दाख में चुशुल घाटी के दक्षिण-पूर्व दृष्टिकोण पर एक पास है। जम्मू और कश्मीर, 5,000 मीटर की ऊंचाई पर (16,404 फुट)। कंपनी क्षेत्र को तीन पट्टों की स्थिति से बचाव किया गया था और आसपास के इलाके को बाकी बटालियन से अलग कर दिया गया था। रेजांग ला पर चीनी हमले की उम्मीद 18 नवंबर को सुबह आई थी। यह बहुत ठंडा शीतकालीन रात का अंत था, हल्की बर्फ गिरने के साथ। रेज़ांग ला के माध्यम से बर्फीले हवाओं को काटने और बेंबलिंग पतली हवा और ठंड से अधिक, रेजांग ला के स्थान को अधिक गंभीर खामी था। यह एक हस्तक्षेप करने वाली सुविधा के कारण भारतीय तोपखाने से बना था, जिसका मतलब था कि उन्हें बड़े बंदूकों के सुरक्षात्मक आराम के बिना बनाना पड़ता था। सुबह की मंद रोशनी में, चीनी नंबर 7 और नं .8 प्लाटून पदों पर हमला करने के लिए नल्ला के माध्यम से आगे बढ़ते देखा गया।


चीनी हमलावरों का सामना करने के लिए भारतीय सेना के सैनिकों की तैयारी की स्थिति पर गिर गया। 05:00 को जब दृश्यता में सुधार हुआ तो दोनों पक्षियों ने राइफल्स, लाइट मशीनगनों, ग्रेनेड और मोर्टारों के साथ बढ़ते चीनी पर खुले हुए हैं। भारतीय तोपखाने का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। नालों मृत शरीर से भरे थे बचे हुए और मृत शरीर चीनी, हालांकि वे पहले ललाट हमले में विफल रहे, निराश नहीं हुए थे। उन्होंने 05:40 के बारे में तीव्र तोपखाने और मोर्टार फायर के लिए भारतीय पदों का पालन किया।


भारत चीन युद्ध


जून 1962 में चीन-भारत युद्ध के दौरान 13 कुमायूं बटालियन चुशूल सेक्टर में तैनात थी। उस ब्रिगेड की कमान ब्रिगेडियर टी.एन. रैना संभाल रहे थे। अम्बाला से जब यह ब्रिगेड जम्मू कश्मीर पहुँची तो उन्होंने एक दम पहली बार बर्फ देखी। इसके पहले उन्होंने कभी पर्वतीय सीमा का अनुभव नहीं लिया था। अब उन्हें दुनिया के सबसे ज्यादा शीत प्रताड़ित क्षेत्र में लड़ना था। उनके सामने चीन की सेना सिनकियांग से थी, जो ऐसे युद्ध क्षेत्र में लड़ने की अभ्यस्त थी। चीन की सेना के पास सभी आधुनिक शास्त्र तथा भरपूर गोला-बारूद था, जबकि भरतीय सैनिकों के पास एक बार में एक गोली की मार करने वाली राइफलें थीं, जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद बेकार घोषित कर दी गई थीं। मौसम की मार और हथियारों की इस स्थिति के बावजूद 13 कुमाँयू की 'सी कम्पनी के मेजर शैतान सिंह इस मनोबल से भरपूर थे कि उनके रेजांग ला के मोर्चे पर अगर दुश्मन हमला करता है तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी होगी। दुश्मन की ओर से सब तरफ आटोमेटिक बन्दूकों की तथा मोर्टार की घेरा बन्दी बनी हुई थी। चीनी फौजों ने अचानक हमला किया और सचमुच उसे भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। युद्ध भूमि दुश्मन के सैनिकों की लाशों से भर गई। उनके गुपचुप हमले का कुमायूंनी सतर्कता के कारण भारत को चल गया था। जब चीनी दुश्मन का अचानक हमला नाकाम हो गया तो उसने रेजांग ला पर मोर्टार तथा रॉकेटों से बंकरों पर गोलीबारी शुरू कर दी। ऐसे में किसी भी बंकर के बचे रहे जाने की सम्भावना नहीं थी फिर भी मेजर शैतान सिंह की टुकड़ी ने वहाँ से पीछे हटने का नाम नहीं लिया।


120 जवानों में से 114 शहीद


भारत के इन 120 जवानों में से 114 जवान शहीद हो गए, पांच जवानों को चीन ने युद्ध कैदी के तौर पर गिरफ्तार कर लिया. एक जवान बाद में बच निकलने में कामयाब रहे. वहीं एक सैनिक को मेजर शैतान सिंह ने वापस भेज दिया, ताकि वह पूरे घटनाक्रम को दुनिया के सामने बयान कर सके.मेजर शैतान भी घायल हो गए उनको बचाने के लिए एक सैनिक ने उनके जख्मी शरीर को अपने शरीर के साथ बांधा और पहाड़ों में लुढ़कते हुए उन्हें एक सुरक्षित स्थान पर लेटा दिया, जहां उनकी मौत हो गई.


1963 की फरवरी में जब मेजर शैतान सिंह की बॉडी पाई गई, तब उनका पूरा शरीर जम चुका था और मेजर मौत के बाद भी अपने हथियार को मजबूती से थामे हुए थे.


मेजर शैतान को मिला परमवीर चक्र


शहीद होने के बाद परमवीर चक्र से नवाज़ा गया. मेजर शैतान सिंह और उनके 120 जवानों की याद में चुशुल के करीब रेज़ांगला में एक युद्ध-स्मारक बनवाया गया. हर साल 18 नवम्बर को इन वीर सिपाहियों को पूरा देश और सेना याद करना नहीं भूलती है. इसके अलावा ‘ए मेरे वतन के लोगों’ को लिखने वाले प्रदीप की प्रेरणा भी मेजर शैतान सिंह और उनके बहादुर साथी ही थे