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राणा कुम्भा जीवनी - Biography of Rana Kumbha in Hindi Jivani

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राणा मोकल के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र कुम्भकर्ण (कुम्भा Rana Kumbha) वि.सं. १४९० (ई.सं. १४३३) में चित्तौड़ के राज्य सिंहासन पर बैठा। कुम्भा राजाओं का शिरोमणि, विद्वान, दानी और महाप्रतापी था। राणा कुम्भा ने गद्दी पर बैठते ही सबसे पहले अपने पिता के हत्यारों से बदला लेने का निश्चय किया। राणा मोकल की हत्या चाचा, मेरा और महपा परमार ने की थी। वे तीनों दुर्गम पहाड़ों में जा छिपे। इनको दण्डित करने के लिए रणमल राठौड़ (मण्डर) को भेजा। रणमल ने इन विद्रोहियों पर आक्रमण किया। रणमल ने चाचा और मेरा को मार दिया, किन्तु महपा चकमा देकर भाग गया। चाचा का पुत्र और महपा ने भागकर माण्डू (मालवा) के सुलतान के यहाँ शरण ली। राणा ने अपने विद्रोहियों को सुपुर्द करने के लिए सुल्तान के पास सन्देश भेजा। सुल्तान ने उत्तर दिया कि मैं अपने शरणागत को किसी भी तरह नहीं छोड़ सकता। अतः दोनों में युद्ध की सम्भावना हो गई।


वि.सं. १४९४ (ई.स. १४३७) में सारंगपुर के पास मालवा सुल्तान महमूद खिलजी पर राणा कुम्भा ने आक्रमण किया। सुल्तान हारकर भाग गया और माण्डू के किले में शरण ली। कुम्भा ने माण्डू पर आक्रमण किया। अन्त में सुल्तान पराजित हुआ और उसे बन्दी बनाकर चित्तौड़ ले आए। उसे कुछ समय कैद में रख कर क्षमा कर दिया। इस विजय के उपलक्ष में राणा कुम्भा ने चित्तौड़ दुर्ग में कीर्ति स्तम्भ बनवाया ।


उनके शत्रुओं ने अपनी पराजयों का बदला लेने का बार-बार प्रयत्न किया, किंतु उन्हें सफलता न मिली। मालवा के सुलतान ने पांच बार मेवाड़ पर आक्रमण किया। नागौर के स्वामी शम्स खाँ ने गुजरात की सहायता से स्वतंत्र होने का विफल प्रयत्न किया। यही दशा आबू के देवड़ों की भी हुई। मालवा और गुजरात के सुलतानों ने मिलकर महाराणा पर आक्रमण किया किंतु मुसलमानी सेनाएँ फिर परास्त हुई। महाराणा ने अन्य अनेक विजय भी प्राप्त किए। उसने डीडवाना(नागौर) की नमक की खान से कर लिया और खंडेला, आमेर, रणथंभोर, डूँगरपुर, सीहारे आदि स्थानों को जीता। इस प्रकार राजस्थान का अधिकांश और गुजरात, मालवा और दिल्ली के कुछ भाग जीतकर उसने मेवाड़ को महाराज्य बना दिया।


किंतु महाराणा कुंभकर्ण की महत्ता विजय से अधिक उनके सांस्कृतिक कार्यों के कारण है। उन्होंने अनेक दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाए तथा चित्तौड़ को अनेक प्रकार से सुसंस्कृत किया। कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला उनकी कृति है। बंसतपुर को उन्होंने पुन: बसाया और श्री एकलिंग के मंदिर का जीर्णोंद्वार किया। चित्तौड़ का कीर्तिस्तंभ तो संसार की अद्वितीय कृतियों में एक है। इसके एक-एक पत्थर पर उनके शिल्पानुराग, वैदुष्य और व्यक्तित्व की छाप है। वे विद्यानुरागी थे, संगीत के अनेक ग्रंथों की उन्होंने रचना की और चंडीशतक एवं गीतगोविंद आदि ग्रंथों की व्याख्या की। वे नाट्यशास्त्र के ज्ञाता और वीणावादन में भी कुशल थे। कीर्तिस्तंभों की रचना पर उन्होंने स्वयं एक ग्रंथ लिखा और मंडन आदि सूत्रधारों से शिल्पशास्त्र के ग्रंथ लिखवाए। इस महान राणा की मृत्यु अपने ही पुत्र उदयसिंह के हाथों हुई।महान शासक


राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी मालवा के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में चित्तौड़ में एक ‘कीर्ति स्तम्भ’ की स्थापना की। स्थापत्य कला के क्षेत्र में उसकी अन्य उपलब्धियों में मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िले हैं, जिसे राणा कुम्भा ने बनवाया था। मध्यकालीन भारत के शासकों में राणा कुम्भा कि गिनती एक महान् शासक के रूप में होती थी।


साहित्य प्रेमी :


वह स्वयं एक अच्छा विद्वान् तथा वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद, व्याकरण, राजनीति और साहित्य का ज्ञाता था। कुम्भा ने चार स्थानीय भाषाओं में चार नाटकों की रचना की तथा जयदेव कृत 'गीत गोविन्द' पर 'रसिक प्रिया' नामक टीका भी लिखी।


मृत्यु तथा उत्तराधिकारी :


1473 ई. में उसकी हत्या उसके पुत्र उदयसिंह ने कर दी। राजपूत सरदारों के विरोध के कारण उदयसिंह अधिक दिनों तक सत्ता-सुख नहीं भोग सका। उसके बाद उसका छोटा भाई राजमल (शासनकाल 1473 से 1509 ई.) गद्दी पर बैठा। 36 वर्ष के सफल शासन काल के बाद 1509 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र राणा संग्राम सिंह या 'राणा साँगा' (शासनकाल 1509 से 1528 ई.) मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसने अपने शासन काल में दिल्ली, मालवा, गुजरात के विरुद्ध अभियान किया। 1527 ई. में खानवा के युद्ध में वह मुग़ल बादशाह बाबर द्वारा पराजित कर दिया गया। इसके बाद शक्तिशाली शासन के अभाव में जहाँगीर ने इसे मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया।


इतिहास :


1. 1433 ई. इस वर्ष महाराणा कुम्भा का राज्याभिषेक हुआ।


2. (कर्नल जेम्स टॉड ने महाराणा कुम्भा के राज्याभिषेक का वर्ष 1418 ई. बताया है व उनकी पत्नी का नाम मीराबाई बताया है, जो कि सही नहीं है | मीराबाई तो महाराणा कुम्भा के 100 वर्ष बाद की थीं)।


3. महाराणा मोकल के मामा मारवाड़ के रणमल्ल थे।


4. रणमल्ल चित्तौड़ आए और चाचा व मेरा को मारने के लिए 500 सवारों के साथ निकले और कई जगह धावे बोले।


5. चाचा व मेरा अपने साथी राजपूतों के हाथों मारे गए।


6. इक्का (चाचा का बेटा) और महपा पंवार भागकर मांडू के सुल्तान महमूद की शरण में चले गए।


7. राघवदेव (महाराणा कुम्भा के काका) और रणमल्ल के बीच खटपट हो गई।


8. रणमल्ल ने धोखे से राघवदेव की हत्या कर दी, जिसका हाल कुछ इस तरह है कि रणमल्ल ने राघवदेव को तोहफे में अंगरखा दिया, जिसकी दोनों बाहों के मुंह सीये हुए थे | जब राघवदेव ने अंगरखा पहना तो उनके दोनों हाथ फँस गए, इतने में रणमल्ल ने तलवार से राघवदेव की हत्या कर दी |


9. महाराणा कुम्भा ने जनकाचल पर्वत व आमृदाचल पर्वत पर विजय प्राप्त की 1437 ई.।


10. महाराणा कुम्भा ने देवड़ा राजपूतों को पराजित कर आबू पर अधिकार किया।


11. 1437-38 ई.* महाराणा कुम्भा ने मांडलगढ़ पर हमला कर विजय प्राप्त की. मांडलगढ़ पर हाडा राजपूतों के सहयोगियों का कब्जा था।


12. इन्हीं दिनों में महाराणा ने खटकड़ पर हमला कर विजय प्राप्त की।


13. कुछ दिन बाद जहांजपुर पर हमला किया | काफी मशक्कत के बाद महाराणा कुम्भा ने जहांजपुर पर विजय प्राप्त की |