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15 सितंबर 1915 को पंजाब के संगरूर जिले के भालियां में जन्मे लांसनायक करमसिंह को 1948 में परमवीर चक्र (जीवित रहते हुए) से सम्मानित किया गया।
दुसरे विश्वयुद्ध के दौरान करमसिंह 26 वर्ष की आयु में फौज में भर्ती हुए, जहां उन्हें सिख रेजीमेंट में नियुक्ति मिली। द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनी वीरता के लिए करमसिंह को 1944 में सेना पदक से नवाजा गया और पदोन्नत कर उन्हें लांसनायक बना दिया गया।
1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में मेजर सोमनाथ शर्मा के शहीद हो जाने के बाद लांसनायक करमसिंह ने बखूबी मोर्चा संभाला और न केवल जीत हासिल की, बल्कि अपनी टुकड़ी को भी सही सलामत रखा। लांसनायक करमसिंह ने अपने हाथों से परमवीर चक्र सम्मान प्राप्त किया और लंबा जीवन जीते हुए 1995 में अपने ही गांव में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।सैन्य वृत्ति
15 सितंबर 1 9 41 को, उन्होंने सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में दाखिला लिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बर्मा अभियान के दौरान प्रशासन बॉक्स की लड़ाई में उनके आचरण और साहस के लिए उन्हें सैन्य पदक से सम्मानित किया गया। एक युवा, युद्ध-सजाया सिपाय के रूप में, उन्होंने अपनी बटालियन में साथी सैनिकों से सम्मान अर्जित किया।
1947 युद्ध
3 जून, 1947 को अंग्रेज़ों ने देश के बंटवारे की अपनी योजना की घोषणा की। उस समय यह देश छोटी-बड़ी रियासतों में बँटा हुआ था। अंग्रेज़ों ने यह प्रस्ताव रखा कि रियासतें, जिस किसी भी बँटे हुए हिस्से, हिंदुस्तान या पाकिस्तान, में मिलना चाहें मिल जाएं या चाहें तो स्वतन्त्र रहने की मर्जी जाहिर करें। लगभग सब रियासतों ने अपना निर्णय लिया। जिन रियासतों ने कहीं भी न मिलना तय किया, जम्मू कश्मीर उनमें से एक रियासत थी, जिसमें महाराजा हरि सिंह की हुकूमत थी। उन्होंने अपनी प्रजा की मर्जी जानने के नाम पर, निर्णय लेने से पहले कुछ समय माँगा जो अंग्रेजों ने दिया। भारत और पाकिस्तान दोनों को इस बीच धैर्य पूर्वक इंतजार करना था। भारत उस समय बंटवारे की समस्याओं में उलझा हुआ था, इसलिये वह तो उस ओर से खामोश था ही, लेकिन पाकिस्तान तो जम्मू कश्मीर पर आँख गड़ाए बैठा था। उसे लगता था कि मुस्लिम आबादी तथा सीमा के हिसाब से जम्मू कश्मीर उसे ही मिलना चाहिये। पाकिस्तान इस इन्तजार में बेचैन हो गया। उसने जम्मू कश्मीर को हमेशा से मिलने वाली राशन, तेल, नमक, किरोसिन आदि की सप्लाई बंद करदी। उसका इरादा राजा हरि सिंह पर दबाब डालना था। उसके बाद उसने 20 अक्टूबर, 1947 को जम्मू कश्मीर पर सब तरफ से हमला कर दिया। कश्मीर ने भारत से मदद माँगी तो भारत ने कहा कि चूँकि कश्मीर स्वतंत्र रहना चाहता है, इसलिए उसका बीच में पड़ना ठीक नहीं है। इस पर घबराकर हरि सिंह ने यथास्थिति बनाए रखते हुए भारत के साथ जुड़ने का प्रस्ताव पत्र लिखा जिसे भारत ने स्वीकार कर लिया। अब लड़ाई भारत और पाकिस्तान की हो गई। भारत इस तरफ अकेला था और पाकिस्तान को ब्रिटिशराज के फौजी और नागरिक, अधिकारियों का गुप-चुप हौसला था।
पाक सेना को दिया करारा जवाब :
1& अक्टूबर 1948, इन दिनों भारत-पाक युद्ध अपने चरम सीमा पर था और लांस नायक करम सिंह अपने तीन साथियों के साथ कश्मीर में तैनात थे। ठीक उसी समय पाकिस्तानी सेना ने चौकी कब्जा करने के उद्देश्य से धावा बोल दिया। पाक सेना द्वारा की गई सेलिंग इतनी भीषण थी कि आस-पास मौजूद सारे बंकर ध्वस्त हो गए और संचार माध्यम भी टूट गया, जिसकी वजह से सेना कमांड को इस हमले कोई जानकारी नहीं हो सकी। तीन साथियों के साथ करम सिंह लागातार पाक की कार्रवाई का जवाब देते रहे। पाकिस्तान सेना का इरादा तिथवाल सेक्टर के रास्ते रीचमार गली पर कब्जा करने का था।
पाक को पीछे हटने पर किया मजबूर
पाकिस्तान के भीषण हमले के बावजूद भारतीय चौकी पर मौजूद करम सिंह और उनके तीनों साथियों ने हार नहीं मानी और आखिरी सांस तक डटे रहने का फैसला किया। करम सिंह ने मशीनगन और ग्रेनेड से जवाबी हमला जारी रखा और पाकिस्तानी सैनिकों को आगे बढऩे नहीं दिया। लांस नायक करम सिंह और उनके तीनों साथियों की सूझ-बूझ और अचूक कार्रवाई से पाकिस्तान के दो यूनिट को भारी नुकसान पंहुचा और वो हमला बंद कर पीछे हट गए। इस हमले में लांस नायक करम सिंह और उनके तीनों साथी बुरी तरह से घायल हो गए।
परम वीर चक्र
21 जून 1950 को, परम वीर चक्र के सिंह का पुरस्कार राजपत्रित किया गया था।
बाद में सितम्बर 1 9 6 9 में करम सिंह को अपने पद से सम्मानित किया गया और उन्हें 1 9 6 9 में सेवानिवृत्ति से पहले मानद कप्तान का दर्जा दिया गया। 20 जनवरी 1 99 3 को उनके गांव में उनकी मृत्यु हो गई और उनकी पत्नी अपनी पत्नी गुरदियल कौर और उनके बचपन से बच गए।
अन्य सम्मान
1 9 80 के दशक में, शिपमेंट मिनिस्ट्री के तत्वावधान में भारत सरकार की शिपिंग कॉर्पोरेशन (एससीआई), पीवीसी प्राप्तकर्ताओं के सम्मान में पंद्रह क्रूड ऑयल टैंकरों का नाम दिया गया था। टैंकर एमटी लांस नायक कर्म सिंह, पीवीसी को 30 जुलाई 1 9 84 को एससीआई को सौंप दिया गया था, और चरणबद्ध होने से पहले 25 साल के लिए सेवा की।