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चंगेज़ खान का जन्म ११६२ के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। चंगेज़ खान की दांयी हथेली पर पैदाइशी खूनी धब्बा था।उसके तीन सगे भाई व एक सगी बहन थी और दो सौतेले भाई भी थे।उसका वास्तविक या प्रारंभिक नाम तेमुजिन (या तेमूचिन) था। मंगोल भाषा में तिमुजिन का मतलब लौहकर्मी होता है।उसकी माता का नाम होयलन और पिता का नाम येसूजेई था जो कियात कबीले का मुखिया था।
येसूजेई ने विरोधी कबीले की होयलन का अपहरण कर विवाह किया था।लेकिन कुछ दिनों के बाद ही येसूजेई की हत्या कर दी गई। उसके बाद तेमूचिन की माँ ने बालक तेमूजिन तथा उसके सौतले भाईयों बहनों का लालन पालन बहुत कठिनाई से किया। बारह वर्ष की आयु में तिमुजिन की शादी बोरते के साथ कर दी गयी।इसके बाद उसकी पत्नी बोरते का भी विवाह् के बाद ही अपहरण कर लिया था।
अपनी पत्नी को छुडाने के लिए उसे लड़ाईया लड़नी पड़ीं थी। इन विकट परिस्थितियों में भी वो दोस्त बनाने में सक्षम रहा। नवयुवक बोघूरचू उसका प्रथम मित्र था और वो आजीवन उसका विश्वस्त मित्र बना रहा। उसका सगा भाई जमूका भी उसका एक विश्वसनीय साथी था। तेमुजिन ने अपने पिता के वृद्ध सगे भाई तुगरिल उर्फ़ ओंग खान के साथ पुराने रिश्तों की पुनर्स्थापना की।
जब तेमुजिन 9 वर्ष का था तब उसके पिता उसको अपनी होने वाली दुल्हन के परिवार के यहाँ ले गया | वापस लौटते समय चंगेज खा के पिता को प्रतिद्वंद्वी टटार जनजाति विद्रोहियों ने खाने में जहर मिलाकर मार दिया | अपने पिता की मौत के बाद तेमुजिन अपने पिता के स्थान पर कबीले का प्रमुख बन गया | हालांकि कबीले के लोगो ने उस युवा लडके को मुखिया मानने से मना कर दिया | अब उसके परिवार में उसके जवान भाई और सौतले भाईयो ने उसे कबीले से बाहर निकाल दिया और उसे शरणार्थी का दर्जा दे दिया | अपने परिवार के ज्यादा दबाब में अनी पर तेमुजिन ने अपने सौतले भाई बेख्तेर को मार दिया और परिवार का मुखिया बन गया |
16 वर्ष की उम्र में तेमुजिन ने बोर्टे नामक महिला से विवाह किया ताकि कोंकिरत और उसके कबीले के बीच दोस्ती बढ़े | कुछ दिनों बाद तेमुजिन की पत्नी को विद्रोही मेर्किट कबीले ने अगुआ कर लिया और उसे अपने कबील के सरदार की पत्नी बनाने के लिए सौंप दिया | तेमुजिन ने जल्द ही अपनी पत्नी को छुडवा लिया और इस घटना के बाद तेमुजिन की पत्नी ने पहले पुत्र जोची को जन्म दिया | तेमुजिन की पत्नी के अगुआ किये जाने के कारण तेमुजिन को अपने पुत्र के जन्म पर शक हुआ था लेकिन तेमुजिन ने उसे अपना लिया था |तेमुजिन की पत्नी बोर्टे ने चार पुत्रो को जन्म दिया था जबकि उसकी अन्य रानियों से कई पुत्र थे |
अपनी मृत्यु से पहले, ओगेदी खान को अपना उत्तराधाकारी बनाया था. पश्चिमी क्सिया को पराजित करने के बाद 1227 में उनकी मृत्यु हुई थी. उन्हें उनके ही मंगोलिया साम्राज्य में किसी जगह पर दफनाया गया था. अपने शासनकाल में उन्होंने मंगोलिया साम्राज्य की पहचान पुरे विश्व को करवाई थी और एक विशाल और सशक्त साम्राज्य का निर्माण किया था. मध्य एशिया और चाइना का अधिकतर भाग अपने वश में कर लिया था, जिस वजह से ज्यादा से ज्यादा लोग उनके साम्राज्य में रहने लगे थे. और अपने इसी रवैये के कारण स्थानिक इतिहास में चंगेज खान की पहचान एक भयंकर शासक के रूप में की जाती है.
अपनी सेना और साम्राज्य के विस्तार के अलावा, चंगेज खान ने मंगोल साम्राज्य को दूसरी बातो में भी विस्तृत किया. चंगेज खान ने उस समय उयघुर लिपि को भी अपनाया और उसे अपने मंगोलिया साम्राज्य में लिखने के लिए उपयोग करने लगे थे. उनकी विजयो के इतिहास को देखकर यही कहा जा सकता है की इससे पहले इतनी विजय की यात्रा किसी ने नहीं की होगी. मंगोलिया साम्राज्य के स्थानिक लोग उनके कहर से इतने भयभीत थे की उन्होंने चंगेज खान को खुदा का कहर भी कहा था.
हालांकि प्रारंभ में उसका मित्र था, बाद में वो शत्रु बन गया । ११८० तथा ११९० के दशकों में वो ओंग खान का मित्र रहा और उसने इस मित्रता का लाभ जमूका जैसे प्रतिद्वंदियों को हराने के लिए किया। जमूका को हराने के बाद उसमें बहुत आत्मविश्वास आ गया और वो अन्य कबीलों के खिलाफ युद्ध के लिए निकल पड़ा । इनमें उसके पिता के हत्यारे शक्तिशाली तातार कैराईट और खुद ओंग खान शामिल थे। ओंग खान के विरुद्ध उसने 1203 में युद्ध छेड़ा ।
1206 इस्वी में तेमुजिन, जमूका और नेमन लोगों को निर्णायक रूप से परास्त करने के बाद स्टेपी क्षेत्र का सबसे प्रभावशाली व्यक्ति बन गया । उसके इस प्रभुत्व को देखते हुए मंगोल कबीलों के सरदारों की एक सभा (कुरिलताई) में मान्यता मिली और उसे चंगेज खान (समुद्री खान) या सार्वभौम शासक की उपाधि देने के साथ महानायक घोषित किया गया । कुरिलताई से मान्यता मिलने तक वो मंगोलों की एक सुसंगठित सेना तैयार कर चुका था । उसकी पहली इच्छा चीन पर विजय प्राप्त करने की थी।
चीन उस समय तीन भागों में विभक्त था – उत्तर पश्चिमी प्रांत में तिब्बती मूल के सी-लिया लोग, जरचेन लोगों का चीन राजवंश जो उस समय आधुनिक बीजिंग के उत्तर वाले क्षेत्र में शासन कर रहे थे तथा शुंग राजवंश जिसके अंतर्गत दक्षिणी चीन आता था । 1209 में सी लिया लोग परास्त कर दिए गए। 1213 में चीन की महान दीवार का अतिक्रमण हो गया और 1215 में पेकिंग (आज का बीजिंग) नगर को लूट लिया गया । चीनी राजवंश के खिलाफ १२३४ तक लड़ाइयाँ चलीं, पर अपने सैन्य अभियान की भरपूर प्रगति को देख चंगेज खान अपने अनुचरों की देखरेख में युद्ध को छोड़ वापस मातृभूमि को मंगोलिया लौट गया ।
क्रूर योद्धा चंगेज खान की बात करें, तो उसने अपने जीवन भर की लड़ाइयों में लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। उसकी निर्दयता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि वो जिधर से निकलता, वहां थोड़ा सा भी विरोध होने पर आस-पास के इलाकों को भी खून से लथपथ कर देता था। उसकी इसी निर्दयता के कारण पश्चिम एशिया तक के राजाओं ने उसके सामने हार मान ली। तेमुजिन की अधीनता स्वीकार करने के बाद तमाम कबीलों के राजाओं ने उसे चंगेज खान (समुद्रों के राजा) की उपाधि दी।
चंगेज खान ने ही प्रसिद्ध मंगोल साम्राज्य की नींव डाली। जिसका पूरी दुनिया के 22 फीसदी इलाके पर कब्जा था। चंगेज खान की बर्बरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने ईरान की तीन चौथाई आबादी का समूल खात्मा कर दिया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि चंगेज के हमले के समय जितनी आबादी पूरे ईरान की थी, उतनी आबादी वापस होने में 750 सालों का लंबा समय लगा। ऐसे में ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि चंगेज खान कितना क्रूर और निर्दयी था। एक अनुमान के मुताबिक उसने 4 करोड़ लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
सन् 1218 में कराखिता की पराजय के बाद मंगोल साम्राज्य अमू दरिया, तुरान और ख्वारज्म राज्यों तक विस्तृत हो गया । 1219 से 1221 के बीच कई बड़े राज्यों – ओट्रार, बुखारा, समरकंद, बल्ख, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हेरात के राजाओ- ने मंगोल सेना के सामने समर्पण कर दिया । जिन नगरों ने प्रतिशोध किया उनका विध्वंस कर दिया गया और वहॉ की सम्पदा लूट ली और जिसने लूट का विरोध किया उसको निर्दयी सेना ने मौत के घाट उतार दिया। इस दौरान मंगोलों ने बेपनाह बर्बरता का परिचय दिया और लाखों की संख्या में लोगों का वध कर दिया। दुनिया भर में दुर्दान्त चंगेजखान ने भय और हाहाकार का वातावरण बना दिया । भारत सहित संपूर्ण रशिया एशिया और अरब देश चंगेज खान के नाम से ही भयभीत रहने लगे ।
चंगेज खान ने गजनी और पेशावर पर अधिकार कर लिया तथा ख्वारिज्म वंश के शासक अलाउद्दीन मुहम्मद को कैस्पियन सागर की ओर खदेड़ दिया जहाँ 1220 में उसकी मृत्यु हो गई । उसका उत्तराधिकारी जलालुद्दीन मंगवर्नी हुआ जो मंगोलों के आक्रमण से भयभीत होकर गजनी चला गया । चेगेज खान ने सिंधु नदी को पार कर उत्तरी भारत और असम के रास्ते मंगोलिया वापस लौटने की सोची ।
पर असह्य गर्मी, प्राकृतिक आवास की कठिनाईयों तथा उसके शमन निमितज्ञों द्वारा मिले अशुभ संकेतों के कारण वो जलालुद्दीन मंगवर्नी के विरुद्ध एक सैनिक टुकड़ी छोड़ कर वापस आ गया । इस तरह भारत में उसके न आने से तत्काल भारत एक संभावित लूटपाट और वीभत्स उत्पात से बच गया । अपने जीवन का अधिकांश भाग युद्ध में व्यतीत करने के बाद सन् 1227 में उसकी मृत्यु हो गई ।
मंगोलिया का क्रूर आक्रमणकारी चंगेज खान इतिहास का सबसे बड़ा हमलावर था। एक नए अनुसंधान के अनुसार इस क्रूर मंगोल योद्धा ने अपने हमलों में इस कदर लूटपाट की और खूनखराबा किया कि एशिया में चीन, अफगानिस्तान सहित उजबेकिस्तान, तिब्बत और वर्मा आदि देशों की बहुत बड़ी आबादी का सफाया हो गया।
वह अपार रत्नों के भण्डार सोने चांदी के सिक्के और हीरे मोती अपने घोडों और खच्चरो पर लाद कर ले गया । समझा जाता है कि विभिन्न देशों में उसके हमलों में तकरीबन चार करोड़ लोग मारे गए। शुक्र है कि वह 65 साल की उम्र में ही मर गया और अन्य मंगोलों की तरह सौ सवा सौ साल तक नहीं जिया अन्यथा और भी अनर्थ होता। उसके मरने के बाद अनेक देशों ने कुछ समय तक राहत की सांस ली