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नाम : सिद्धार्थ गौतम।
जन्म : 563 ई.पू (अनुमानत) लुम्बिनी (नेपाल)।
पिता : नरेश सुद्धोधन
माता : राणी महामाया (महादेवी)
पत्नी : यशोधरा।
प्रारंभीक जीवन:
उनका जन्म 483 और 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में हुआ था। लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी के अपने नैहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया।
गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम भी कहलाए। शाक्यों के राजा शुद्धोधन उनके पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता मायादेवी जो कोली वन्श की थी का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी)ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया, जिसका अर्थ है "वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो"। जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की- बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा।
सिद्धार्थ बचपन से ही करुणायुक्त और गंभीर स्वभाव के थे । बड़े होने पर भी उनकी प्रवृत्ति नहीं बदली । तब पिता ने यशोधरा नामक एक सुदर कन्या के साथ उनका विवाह करा दिया । यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल रखा गया । परंतु सिद्धार्थ का मन गृहस्थी में नहीं रमा । एक दिन व भ्रमण के लिए निकले । रास्ते में रोगी वृद्ध और मृतक को देखा ता जीवन की सच्चाई का पता चला । क्या मनुष्य की यही गति है, यह सोचकर वे बेचैन हो उठे । फिर एक रात्रिकाल में जब महल में सभी सो रहे थे सिद्धार्थ चुपके से उठे और पत्नी एव बच्चों को सोता छोड़ वन को चल दिए।
महात्मा बुद्ध के मन में धीरे धीरे परिवर्तन होने लगा। राजकुमार बुद्ध ने नगर में घुमने की इच्छा प्रकट की। नगर भ्रमण की उन्हें इजाज़त मिल गई। राजा ने नगर के रक्षकों को संदेश दिया कि वे राजकुमार केा सामने कोई भी ऐसा दृश्य न लायें जिससे उनके मन में संसार के प्रति वैराग्य भावना पैदा हो। सिद्धार्थ नगर में घूमने गए। उन्होंने नगर में बूढ़े को देखा। उसे देखते ही उन्होंने सारथी से पूछा यह कौन है? इसकी यह दशा क्यों हुई है? सारथी ने कहा- यह एक बूढ़ा आदमी है। बुढ़ापे में प्राय सभी आदमियों की यह हालत हो जाती है।
सिद्धार्थ ने एक दिन रोगी को देखा। रोगी को देखकर उन्होंने सारथी से उसके बारे में पूछा। सारथी ने बताया- यह रोगी है और रोग से मनुष्य की ऐसी हालत हो जाती है। इन घटनाओं से सिद्धार्थ का वैराग्य भाव और बढ़ गया। सांसारिक सुखों से उनका मन हट गया। उन्होंने जीवन के रहस्य को जानने के लिए संसार को छोड़ने का निश्चय किया। उन्होंने वन में कठोर तपस्या आरंभ की । तपस्या से उनका शरीर दुर्बल हो गया परंतु मन को शांति नहीं मिली । तब उन्होंने कठोर तपस्या छोड्कर मध्यम मार्ग चुना । अंत में वे बिहार के गया नामक स्थान पर पहुँचे और एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए । एक दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । वे सिद्धार्थ से ‘बुद्ध‘ बन गए । वह पेड़ ‘ बोधिवृक्ष ‘ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
महात्मा बुद्ध के उपदेश सीधे-सादे थे । उन्होंने कहा कि संसार दु:खों से भरा हुआ है । दु:ख का कारण इच्छा या तृष्णा है । इच्छाओं का त्याग कर देने से मनुष्य दु:खों से छूट जाता है । उन्होंने लोगों को बताया कि सम्यक-दृष्टि, सम्यक- भाव, सम्यक- भाषण, सम्यक-व्यवहार, सम्यक निर्वाह, सत्य-पालन, सत्य-विचार और सत्य ध्यान से मनुष्य की तृष्णा मिट जाती है और वह सुखी रहता है । भगवान बुद्ध के उपदेश आज के समय में भी बहुत प्रासंगिक हैं ।
शिक्षा :
सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद् तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हाँकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। सोलह वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का कोली कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। पिता द्वारा ऋतुओं के अनुरूप बनाए गए वैभवशाली और समस्त भोगों से युक्त महल में वे यशोधरा के साथ रहने लगे जहाँ उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। लेकिन विवाहके बाद उनका मन वैराग्यमें चला और सम्यक सुख-शांतिके लिए उन्होंने आपने परिवार का त्याग कर दिया।
उन्होंने निर्वाण का जो मार्ग मानव मात्र को सुझाया था,वह आज भी उतनाही प्रासंगिक है जितना आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व था, मानवता की मुक्ति का मार्ग ढूंढने के लिए उन्होंने स्वयं राजसी भोग विलास त्याग दिया और अनेक प्रकार की शारीरिक यंत्रणाए झेली। गहरे चिंतन – मनन और कठोर साधना के पश्चात् ही उन्हें गया (बिहार) में बोधिवृक्ष के निचे तत्वज्ञान प्राप्त हुआ था। और उन्होंने सर्व प्रथम पांच शिष्यों को दिक्षा दी थी। तत्पश्चात अनेक प्रतापी राजा भी उनके अनुयायी बन गये।उंका धर्म भारत के बाहर भी तेजी से फैला और आज भी बौद्ध धर्म चीन, जपान आदि कई देशों का प्रधान धर्म है।
विचार :
1. गुजरा वक्त वापस नहीं आता – हम अक्सर ऐसा सोचते हैं कि अगर आज कोई काम अधूरा रह गया तो वो कल पूरा हो जाएगा हालांकि जो वक्त अभी गुजर गया वो वापस नहीं आएगा।"
2. "जिस तरह एक मोमबत्ती बिना आग के खुद नहीं जल सकती, उसी तरह एक इंसान बिना आध्यात्मिक जीवन के जीवित नहीं रह सकता।"
3. "भूतकाल में मत उलझो, भविष्य के सपनों में मत खो जाओ वर्तमान पर ध्यान दो यही खुश रहने का रास्ता है।"
4. "सत्य के मार्ग पर चलते हुए व्यक्ति केवल दो ही गलतियाँ कर सकता है या तो पूरा रास्ता न तय करना या फिर शुरुआत ही न करना।"
5. हर इंसान को यह अधिकार है कि वह अपनी दुनिया की खोज स्वंय करे।
6. हर दिन की अहमियत समझें – इंसान हर दिन एक नया जन्म लेता है हर दिन एक नए मकसद को पूरा करने के लिए है इसलिए एक-एक दिन की अहमियत समझें।
7. गुजरा वक्त वापस नहीं आता – हम अक्सर ऐसा सोचते हैं कि अगर आज कोई काम अधूरा रह गया तो वो कल पूरा हो जाएगा हालांकि जो वक्त अभी गुजर गया वो वापस नहीं आएगा।
8. खुशी हमारे दिमाग में है- खुशी,पैसों से खरीदी गई चीजों में नहीं बल्कि खुशी इस बात में है कि हम कैसा महसूस करते हैं, कैसा व्यवहार करते हैं और दूसरे के व्यवहार का कैसा जवाब देते हैं इसलिए असली खुशी हमारे मस्तिष्क में है।
9. आकाश में पूरब और पश्चिम का कोई भेद नहीं है,लोग अपने मन में भेदभाव को जन्म देते हैं और फिर यह सच है ऐसा विश्वास करते हैं।
10. अच्छी चीजों के बारे में सोचें – हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं, इसलिए सकारात्मक बातें सोचें और खुश रहें।
11. जिस तरह से लापरवाह रहने पर, घास जैसी नरम चीज की धार भी हाथ को घायल कर सकती है, उसी तरह से धर्म के असली स्वरूप को पहचानने में हुई गलती आपको नरक के दरवाजे पर पहुंचा सकती है|
12. इर्ष्या और नफरत की आग में जलते हुए इस संसार में खुशी और हंसी कैसे स्थाई हो सकती है? अगर आप अँधेरे में डूबे हुए हैं तो आप रौशनी की तलाश क्यों नहीं करते|
13. जिस व्यक्ति का मन शांत होता है| जो व्यक्ति बोलते और अपना काम करते समय शांत रहता है| वह वही व्यक्ति होता है जिसने सच को हासिल कर लिया है और जो दुःख-तकलीफों से मुक्त हो चुका है|
14. यह मनुष्य का अपना मन है न कि उसका शत्रु जो उसे रे मार्ग पर ले जाता है।
15. जीभ एक तेज चाकू की तरह बिना खून निकाले ही मार देता है।
16. हजारों दियो को एक ही दिए से, बिना उसके प्रकाश को कम किये जलाया जा सकता है | ख़ुशी बांटने से ख़ुशी कभी कम नहीं होती
17. हम आपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते हैं; हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं| जब मन पवित्र होता है तो ख़ुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है।
18. अपने उद्धार के लिए स्वयं कार्य करें. दूसरों पर निर्भर नहीं रहें।
19. एक हजार खोखले शब्दों से एक शब्द बेहतर है जो शांति लाता है।
20. एक निष्ठाहीन और बुरे दोस्त से जानवरों की अपेक्षा ज्यादा भयभीत होना चाहिए ; क्यूंकि एक जंगली जानवर सिर्फ आपके शरीर को घाव दे सकता है, लेकिन एक बुरा दोस्त आपके दिमाग में घाव कर जाएगा
21. आप को जो भी मिला है उसका अधिक मूल्यांकन न करें और न ही दूसरों से ईर्ष्या करें. वे लोग जो दूसरों से ईर्ष्या करते हैं, उन्हें मन को शांति कभी प्राप्त नहीं होती।
22. एक कुत्ते को एक अच्छा कुत्ता नहीं माना जाता है क्योंकि वह एक अच्छा नादकार है. एक आदमी एक अच्छा आदमी नहीं माना जाता है क्योंकि वह एक अच्छा बोल लेता है।
मृत्यु :
महात्मा बुद्ध सारी आयु धर्म का प्रचार करते रहे। अन्त में इसका प्रचार करते करते अस्सी वर्ष की आयु में कुशीनगर में उनका देहावसान हो गया। वे मर कर भी अमर हो गए। आज भी उनके लाखों अनुभवी उन्हें भगवान के समान पूजते हैं।