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रानी

चांद बीबी जीवनी - Biography of Chand Bibi in Hindi Jivani

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मध्यकालीन समय में भारत के इतिहास में खुद की एक छवि तैयार करने वाली बहादुर स्त्री राजकर्ती के रूप में निजामशाह की पुत्री और आदिलशाह की बीवी Chand Bibi का काम बहोत महत्त्वपूर्ण रहा. राज्य प्रशासन के सुधारणों की वजह से लोकप्रिय रहने वाली चांदबीबी ने रणभूमी में भी चमकदार प्रदर्शन करके दुश्मनों को मात दिलाई. बचपन मे ही अच्छी घोडसवार के रूप में मशहूर होने वाली चांदबीबी ने लढाई में भी कौशलप्राप्त किया है.


फारसी और अरबी भाषा में प्रभुत्व हासील करने के साथ – साथ उन्होंने कानडी और मराठी भाषा भी सीखी है. संगीत और ड्राइंग में भी उन्हे खास दिलचस्पी थी. अपने राजनिति की व्यवस्था के लिये निजाम शाह ने अपनी बेटी चांदबीबी का विवाह विजापूर के आदिलशाह से किया. चांदबीबी आदिलशाह के साथ जंग पे जाने लगी. 1580 में आदिलशाह के मौत के बाद उनके भाई का बेटा इब्राहीम को गददी पे बिठाकर Chand Bibi ने राज्य प्रशासन शुरू किया. इस समय में विजापूर के सरदार और प्रधान ने उसके खिलाफ आवाज उठाई लेकीन उन्हें भी उन्होंने मात दी.


इसी समय अहमदनगर के निजाम के हत्या के बाद उसकी गददी के लिये विवाद शुरू हुवा. मायके का ये सवाल छुड़ाने के लिये चांदबीबी नगर को आयी. इसी समय में दिल्ली का शहजादा मुराद अपने बहोत सैन्यो के साथ दक्षिण में चलके गया लेकीन चांदबीबी ने पुरे कौशल्य के साथ मुराद को मात दी. उनके इस धैर्य पे खुश होकर मुराद ने उन्हें ‘चांद सुलताना’ का किताब दिया.


अहमदनगर सल्तनत


1591 में मुगल सम्राट अकबर ने चारों डेक्कन रियासतों को अपनी सर्वोच्चता को स्वीकार करने के लिए कहा. सभी रियासतों ने अनुपालन को टाल दिया और अकबर के राजदूत 1593 में लौट आए। 1595 में, बीजापुर के शासक इब्राहिम शाह, अहमदनगर से 40 मील दूर एक गंभीर कार्रवाई में मारे गए। उनकी मृत्यु के बाद ज्यादातर उत्कृष्ट लोगों ने महसूस किया कि चांद बीबी (उनके पिता की चाची) के संरक्षण के तहत उनके शिशु पुत्र बहादुर शाह को राजा घोषित करना चाहिए।


हालांकि, डेक्कन मंत्री मियां मंजू ने 6 अगस्त 1594 को शाह ताहिर के बारह वर्षीय बेटे अहमद शाह द्वितीय को राजा घोषित कर दिया। इखलास ख़ान के नेतृत्व में अहमदनगर के हब्शी रईसों ने इस योजना का विरोध किया। रईसों के मध्य बढते असंतोष ने मियां मंजू को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे अकबर के बेटे शाह मुराद (जो गुजरात में था) को अहमदनगर में अपनी सेना लाने के लिए आमंत्रित करे. मुराद मालवा आये जहां वे अब्दुल रहीम खान-ए-खाना की नेतृत्व वाली मुग़ल सेना में शामिल हो गए। राजा अली ख़ान मांडू में उनके साथ हो गए और संयुक्त सेना अहमदनगर की ओर बढ गयी


हालांकि, जब मुराद अहमदनगर के लिए जा रहे थे उस समय कई कुलीन व्यक्तियों ने इखलास ख़ान को छोड़ दिया और मियां मंजू के साथ शामिल हो गए। मियां मंजू ने इखलास ख़ान और अन्य विरोधियों को हरा दिया। फिर उन्होंने मुगलों को आमंत्रित करने पर खेद व्यक्त किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उन्होंने चांद बीबी से अनुरोध किया कि वे संरक्षण स्वीकार कर ले और वे अहमद शाह द्वितीय के साथ अहमदनगर से बाहर चले गए। इखलास ख़ान भी पैठान भाग गए जहां मुगलों ने उन पर हमला किया ओर वे हार गए।


चांद बीबी ने प्रतिनिधित्व स्वीकार कर लिया और बहादुर शाह को अहमदनगर का राजा घोषित कर दिया।


  रोचक तथ्य:-


1580 ई. में पति की मृत्यु हो जाने पर वह अपने नाबालिग बेटे इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय (बीजापुर के पाँचवे सुल्तान) की अभिभाविका बन गयी। बीजापुर का प्रशासन मंत्रियों के द्वारा चलाया जाता रहा।


    1584 ई. में चाँद बीबी बीजापुर से अपनी जन्मभूमि अहमदनगर चली गयी और फिर कभी बीजापुर नहीं गयी। 1593 ई. में मुग़ल बादशाह अकबर की फ़ौजों ने अहमदनगर राज्य पर आक्रमण किया।


    संकट की इस घड़ी में चाँद बीबी ने अहमदनगर की सेना का नेतृत्व किया और अकबर के पुत्र शाहजादा मुराद की फौंजों से बहादुरी के साथ सफलतापूर्वक मोर्चा लिया। किन्तु सीमित साधनों के कारण अंत में चाँद बीबी को मुग़लों के हाथ बरार सुपुर्द कर उनसे संधि कर लेनी पड़ी। लेकिन इस संधि के बाद जल्दी ही लड़ाई फिर शुरू हो गई।


    चाँद बीबी की सुरक्षा व्यवस्था इतनी मज़बूत थी कि उसके जीवित रहते मुग़ल सेना अहमदनगर पर क़ब्ज़ा नहीं कर सकी। किंतु एक उग्र भीड़ ने चाँद बीबी को मार डाला और इसके बाद अहमदनगर क़िले पर मुग़लों का क़ब्ज़ा हो गया।